रस मे डूबी गागरी, छन्दों का त्योहार”

‘साहित्यांजलि प्रज्योदि’, प्रयागराज की ओर से हिन्दी-पखवाड़े के अवसर पर प्रतिवर्ष आयोजित होनेवाले सांस्कृतिक महोत्सव ‘भाषारस-गागरी’ का आयोजन १८ सितम्बर को ‘सारस्वत सभागार’, लूकरगंज, प्रयागराज मे किया गया।

आरम्भ मे दीप-प्रज्वलन कर सांस्कृतिक समारोह का समारम्भ किया गया। डॉ० राजेश सिंह ने मा शारदा की स्तुति की थी। प्रतापगढ़ से पधारे संगमलाल त्रिपाठी ‘भँवर’ ने अध्यक्षता की थी। वयोवृद्ध शाइर और केन्द्रीय गृहमन्त्रालय मे भूतपूर्व राजभाषा-अधिकारी विश्वनाथ प्रसाद श्रीवास्तव मुख्य अतिथि थे।

भाषाविज्ञानी-समीक्षक आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय विशिष्ट अतिथि थे, जिन्होंने उक्त अध्यक्ष, मुख्य अतिथि तथा उमेश श्रीवास्तव का सारस्वत सम्मान किया था।

इसी अवसर पर एक भव्य गीत-मुशाइरा-सम्मेलन का आयोजन किया गया, जो साढ़े चार घण्टे तक चलता रहा। डॉ० नीलिमा मिश्र ने सुनाया, “अभी कविता-कहानी का कुछ सार बाक़ी है, हमारी मातृभाषा का अभी शृंगार बाक़ी है।” संगमलाल त्रिपाठी ‘भँवर’ ने हिन्दी की महत्ता को इस रूप मे रेखांकित किया, “ये हमारे देश की अभिमान है हिन्दी, हमारी हर भाषा मे शान है हिन्दी।” संयोजक डॉ० प्रदीप चित्रांशी ने हिन्दी का समादर करते हुए सुनाया, “रस मे डूबी गागरी, छन्दों का त्योहार, अलंकार से सज सदा, रचे काव्य-संसार।” संचालन कर रहे डॉ० रवि मिश्र का काव्यात्मक कथन था, “ज़िन्दगी ने जब कभी रुलाया है मुझे, मीराँ, सूर, तुलसी ने समझाया है मुझे।”

आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने सुनाया, “भाषा रस ले गागरी, चली पिया के देश। आगे-पीछे घिर गयी, तरह-तरह थे वेश।” विश्वनाथ प्रसाद श्रीवास्तव ने सुनाया, “मेरी खुशियाँ अगर कभी बिक जायें तो आपका ग़म ख़रीद सकता हूँ।” शम्भुनाथ श्रीवास्तव ने सुनाया, “कण मे तुम्हीं क्षण मे प्रण मे तुम्हीं हो प्राण मे, रस मे रसना तुम्हीं ये विश्व के परिमाण मे।”

इनके अतिरिक्त फर्मूद अहमद, डॉ० विनोदकुमार पाण्डेय, ईश्वरशरण शुक्ल, रामलखन चौरसिया, जयामोहन, उमेश श्रीवास्तव, पाल प्रयागी, पं० राकेश मालवीय, धारवेन्द्रप्रताप त्रिपाठी, असद ग़ाज़ीपुरी, शिवप्रताप श्रीवास्तव, अनिल बहोरिकपुरी, सेलाल इलाहाबादी, केशव सक्सेना, प्रकाश सिंह ‘अश्क’, योगेन्द्र मिश्र आदिक कवयित्री-कविगण ने अपनी गीत-ग़ज़लों से श्रोताओं को सम्मोहित किया। केशव सक्सेना ने आभार-ज्ञापन किया।

इस अवसर पर ज्योति चित्रांशी, प्रगति, जया, प्रेम सेन, कैलाशबिहारी आदि श्रोता उपस्थित थे।

★ प्रस्तोता– डॉ० प्रदीप चित्रांशी
(साहित्यकार)