यक़ीँ नहीँ होता, भारत ‘विश्व-विजेता’ बन गया है!

भारतीय कप्तान रोहित शर्मा ने बारबाडोस मे टॉस जीतकर बल्लेबाज़ी करने का निर्णय किया है, यह जानकर-सुनकर अजीब-सा लग रहा था; क्योँकि उसे पहले क्षेत्ररक्षण करना चाहिए था; परन्तु पिच बल्लेबाज़ोँ के अनूकूल है, ऐसा समझकर रोहित ने बल्लेबाज़ी करने का निर्णय किया था। रोहित का वह निर्णय तब तक सही लग रहा था जब तक विराट कोहली दक्षिणअफ़्रीका के गेँदबाज़ोँ के गेंदोँ को सीमा-पार भेजते रहे। विराट ने आते ही ३ चौके जड़ दिये थे; परन्तु जैसे ही रोहित शर्मा और ऋषभ पन्त "आया राम-गया राम'' की भूमिका मे दिखने लगे वैसे ही लगने लगा था कि भारतीय कप्तान रोहित शर्मा का टॉस जीतकर पहले बल्लेबाज़ी करने का निर्णय ग़लत था। जब भारतीय दल के ३४ रनो पर ३ विकेट गिर चुके थे; दिग्गज खेलाड़ी रोहित शर्मा ९, ऋषभ पन्त ० तथा सूर्य कुमार यादव मात्र ३ रन बनाकर पैवेलियन लौट चुके थे, तब उस निर्णय के विरोध मे मुहर लग चुकी थी। कप्तान-द्वारा हरफ़नमौला अक्षर पटेल को पाँचवेँ क्रम मे उतारना अच्छा निर्णय रहा। अक्षर ने ३१ गेंदोँ मे ४७ रनो की दमदार पारी खेलकर अपनी लापरवाही से रनआउट के शिकार हो गये। अक्षर ने ४ छक्के और १ चौका लगाये थे। रही बात विराट कोहली की तो उनकी पिछली पारियोँ को देखते हुए, उनपर विश्वास नहीँ हो पा रहा था कि वे भारत की लड़खड़ाती हुई पारी को सँभालने मे कामयाब हो सकेँगे; मगर विराट ने एक छोर को बचाये रखते हुए, ५९ गेंदोँ मे ७६ रन बना लिये थे। वे परिस्थितियोँ के अनुकूल खेल रहे थे। उनकी और अक्षर पटेल के बीच की गयी अर्द्ध-शतकीय (७२ रन) भागीदारी के चलते भारतीय दल की रनसंख्या १०० के पार पहुँची थी। जब तक कोहली का अर्द्धशतक नहीँ बना था तब तक वे मन्द सुर मे चलते रहे; परन्तु जैसे ही उनके ५० रन पूरे हुए, उनका बल्ला तीव्र सुर मे छक्के-चौके मे बातेँ करने लगा। विराट १९वेँ ओह्वर मे आउट हुए थे, तब तक भारत के १६३ रन बन चुके थे। अक्षर का छक्कोँ से जवाब देना, फिर शिवम दुबे की आक्रामक बल्लेबाज़ी भारतीय खेमे को बल प्रदान करती दिख रही थी। शिवम दुबे ने ताबड़तोड़ २७ रन बनाये। इसप्रकार भारतीय दल ने २० ओह्वरोँ के खेल मे ७ विकेटोँ पर १७६ रन बना लिये थे।

भारतीय दल-द्वारा बनाये गये १७६ रन जीत के लिए पर्याप्त नहीँ दिख रहे थे; क्योँकि फ़ाइनल मैच उन दो दलोँ के बीच मे हो रहा था, जो टी-२० के इतिहास मे बिना कोई मैच हारे पहली बार फ़ाइनल मे पहुँचे थे। वैसे भी दक्षिणअफ़्रीकी खेलाड़ी परिस्थितियोँ के मुताबिक प्रदर्शन करने के लिए जाने जाते हैँ।

टी-२० विश्वकप क्रिकेट जीतने के इरादे से १७७ रनो के लक्ष्य का पीछा करने उतरे दक्षिणअफ़्रीकी दल की शुरूआत अच्छी नहीँ रही। उसके आरम्भिक बल्लेबाज़ रीज़ा हेण्ड्रिक्स और कप्तान एडेन मार्करम मात्र ४-४ रन बनाकर पैवेलियन लौट चुके थे। ऐसा लगने लगा कि भारतीय गेंदबाज़ क़ह्र बरपायेँगे; मगर यह क्या! क्विण्टन डिकॉक और ट्रिस्टन स्टब्स के पावँ 'अंगद के पावँ की तरह से क्रीज़ पर जम चुके थे। उन दोनो ने भारतीय गेंदबाज़ोँ, विशेषत: स्पिनरोँ की जमकर ख़बर ली। उन दोनो की जोड़ी  अक्षर पटेल ने नौवेँ ओह्वर मे तोड़ी थी, तब तक डिकॉक ने ५२ और स्टब्स ने ३१ रन बना लिये थे।

सर्वाधिक घातक हेनरी क्लासेन लग रहे थे। उन्होँने अक्षर के एक ओह्वर मे २४ रन ठोँके थे, जिससे दक्षिणअफ़्रीकी दल ने १५वेँ ओह्वर मे ४ विकेट पर १४७ रन बनाने मे सफल हो चुके थे। अब उसे जीत के लिए ५ ओह्वरोँ मे मात्र ३० रन चाहिए थे; यानी कुल गेंदेँ ३० और जीत के लिए रनसंख्या भी ३०। भारत की हार 'सुनिश्चित' हो चुकी थी; यदि कोई जिता पाता तो वह था 'चमत्कार'। इसके लिए कप्तान राहुल शर्मा ने अपने चामत्कारिक गेंदबाज़ जसप्रीत बुमराह को गेंदबाज़ी की बाग़डोर सौँपी। बुमराह ने विकेट तो नहीँ लिया; मगर ६ गेंदोँ मे मात्र ४ रन देकर विरोधी खेमा की धड़कन बढ़ा दी थी, जिसका परिणाम यह हुआ कि रन न बनाने के दबाव को न झेल सकने के कारण अगले ओह्वर मे हेनरी क्लासेन ने आक्रामक रुख़ इख्त़ियार करने का फ़ैसला ले लिया था। दक्षिणअफ़्रीका के संकटमोचक हेनरी क्लासेन और भारत के चतुर गेंदबाज़ हार्दिक पण्ड्या आमने-सामने थे। हार्दिक ने ऑव़ स्टम्प से बाहर की ओर धीमा गेंद फेँका, जिसपर ज़ोरदार प्रहार करने के चक्कर मे क्लासेन आउट हो गये। यहाँ से मैच का परिदृश्य अँगड़ाई लेता हुआ दिखने लगा। डेविड मिलर क्रीज़ पर थे। दक्षिणअफ़्रीका के पास कुल ६ गेंदेँ थे, जिनमे उन्हेँ जीतने के लिए १६ रन बनाने थे। आख़िरी ओवर के एक गेंद को डेविड ने लगभग सीमा-पार पहुँचा दिया था; मगर वहाँ खड़े जानदार क्षेत्ररक्षक सूर्यकुमार यादव ने दूसरे प्रयास मे– पहले बिना कोई ग़लती किये गेंद को सीमा से बाहर किया, फिर स्वयं को बुद्धिमत्तापूर्वक सीमा से सुरक्षित निकाल कर उस गेंद को दबोच लिया।

इसप्रकार खेलाड़ियोँ, दल-प्रबन्धकोँ तथा दर्शकोँ के साँस के उतार-चढ़ाव, धड़कन के घटाव-बढ़ाव के बीच अन्तिम ओह्वर तक चले मुक़ाबले को मात्र ७ रनो से जीतकर १७ वर्षोँ-बाद भारत विश्व-विजेता बना है। दक्षिणअफ़्रीकी दल ने ८ विकेटोँ पर १६९ रन बनाये थे। इसी विजय के साथ भारतीय प्रशिक्षक राहुल द्रविड़ की शानदार विदाई की गयी।