देश की जनता को ब़गावत की राह पर ले जा रही देश की राजनीति

देश का लोकतन्त्र 'खतरे' में!

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय


रसोई गैस, डीज़ल, पेट्रोल, समस्त खाद्य पदार्थ तथा दैनिक उपभोग-उपयोग की वस्तुओं के दाम आसमान पर; सभी विपक्षी दल मौन?

सत्ता और विपक्षदल मिलकर दोनों हाथों से देश की जनता को दूह रहे हैं और जनता निरुपाय, ठगी-सी रहकर लोकतन्त्रीय गाय के रूप में खड़ी है— दूह लो, जितना दूह सको।

चोर, बेईमान, भ्रष्ट, लालची, निर्लज्ज सरकार चलानेवालों की आँखों पर पट्टियाँ बँधी हुई हैं। किस तरह से देश की औसत जनता अपने और अपने परिवार के पोषण के लिए पग-पग पर संघर्ष कर रही है, तथाकथित ‘चौकीदार’ को नहीं दिखता। वे सभी “आगे नाथ न पीछे पगहा” को चरितार्थ करनेवाले देश की जनता के प्रति इतने निर्मम और निष्ठुर हो सकते हैं, सरकार-गठन से पूर्व कोई सोच तक नहीं सकता था। देश की आर्थिक नीति पूरी तरह से असफल सिद्ध हो चुकी है; कहीं लगता ही नहीं कि देश में सरकार भी है!

भारतीय जनता पार्टी का वह संकल्पनापत्र, जिसमें कहा गया है :– हमारी सरकार बनेगी तो हम ये-ये काम करेंगे, में शामिल एक भी घोषणा पूर्ण नहीं हुई है। धिक्कार है, उस नेतृत्व को, जिसने हम सबके साथ छलावा किया है। सच तो यह है कि उस संकल्पनापत्र के माध्यम से की गयी सभी घोषणाएँ ‘बिनब्याही माँ’ बन चुकी हैं। आश्चर्य है, इस पार्टी में ऐसे-ऐसे निर्लज्ज चेहरे हैं, जो इसका जवाब नहीं दे पाते। जब अँगुली की जाती है तब खुजली मिटाने और देश की जनता को भटकाने के लिए ७० वर्षों पीछे के गड़े मुरदों को खोदने लगते हैं। देश की जनता को गुमराह करने के लिए ‘विषयान्तर’ हो जाते हैं। देश की सभी संवैधानिक शक्तियों को वर्तमान सरकार अपनी काँख में दबाये निर्द्वन्द्व होकर देश-देशान्तर की परिक्रमा कर रही है।

वह व्यक्ति और उसका सारा कुनबा, जिनकी आँखों का पानी मर चुका है, उनसे हम संवेदनशीलता की अपेक्षा नहीं कर सकते। प्रतिदिन हत्या, आत्महत्या, बलात्कार, लूट, डक़ैती, अपहरण, प्रतिशोध इत्यादिक जघन्य कृत्य हो रहे हैं; कहीं किसी को चिन्ता नहीं। अकर्मण्य सरकार ने सरकारी सेवाओं के सारे रास्ते बन्द कर दिये हैं; समुचित योग्यताप्राप्त विद्यार्थियों को केन्द्र और राज्य-सरकारों की बेईमान नज़रिया के चलते बूढ़ा बनाया जा रहा है। कितना धूर्त्त है वह व्यक्ति, जिसने प्रतिवर्ष २ करोड़ लोग को नौकरी देने की घोषणा की थी; अन्तत:, मुँह में कालिख़ पुतवा वज्र बेहया की तरह से ऊल-जुलूल आश्वासन देता आ रहा है।

आश्चर्य है! इतना सब जानने-समझने के बाद भी उसके पक्षधरों की कमी नहीं है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि इस कोटि के नेताओं के समर्थक अधिकतर वे लोग हैं, जो अपनी अयोग्यता के बावजूद खाने-पीने और देश को लूटने का जुगाड़ कर चुके हैं; जो अपनी नकारा बीवी, लम्पट बेटे-बेटियों-दामादों को अवैध तरीक़े से सरकारी नौकरियाँ दिलवा चुके हैं; जो एन०जी०ओ० के नाम पर लाखों-करोड़ों रुपये कमा रहे हैं; जिन्हें हिन्दुत्व के क ख ग की समझ तक नहीं; परन्तु हिन्दू-परिवार में पैदा होने के नाम पर कट्टर हिन्दू कहलाने का नगाड़ा बजा रहे हैं; जो ख़ान्दानी जनसंघी रहे हैं; जो गाहे-बगाहे फेंके हुए टुकड़ों को लपक लेने में भी माहिर रहे हैं तथा जो अन्धभक्त हैं।
इस विकृतिपूर्ण पूरी श्रृंखला में सर्वाधिक दोषी यदि कोई है तो वह है, देश का समस्त विपक्षी दल। आज देश का जो लोकतन्त्रीय राजनीतिक परिदृश्य है, उसमें एक सिरे से सभी विपक्षी दल के नेता ‘कोढ़ी-जैसे’ दिखते हैं; ऐसा एक भी नहीं, जिसके चेहरे से ‘राष्ट्रीय स्वाभिमान’ की आभा दिखायी दे; सब छँटे-छँटाये से दिखते हैं। सबसे बड़ी बात, ख़ुद को राजनीति की दौड़ में सबसे आगे बने रहने का मोह, यहाँ तक कि अब प्रधानमन्त्री की कुरसी पर बैठने का दिवा-स्वप्न देखने की जल्दबाज़ी। क्षेत्रीय दलों की मौक़ापरस्ती खुलकर सामने आ चुकी है।

‘नोटा’ विषय पर भी कोई अँगुली जलाने को तैयार नहीं; आये-दिन सुर बदल रहे हैं। ऐसा इसलिए कि कुछ ‘टुकड़ों’ का आश्वासन मिल गया होगा; लेकिन ‘नोटा’ से यह सन्देश अवश्य जायेगा कि देश की इतने प्रतिशत जनता वर्तमान लोकतन्त्रीय पद्धति से संतुष्ट नहीं है; लिहाजा इसमें प्रभावकारी फेर-बदल अपेक्षित हो जाता है।

उक्त विषयों के विश्लेषणोपरान्त जो निष्कर्ष आता है, वह अति भयावह है; क्योंकि देश का लोकतन्त्र अब पूरी तरह से ख़तरे में है; देश का नेतृत्व निरंकुश हो चुका है; देश की औसत जनता को खाने-पीने के लाले पड़नेवाले हैं, तब हो सकता है, देश की जनता अपने अस्तित्व को ख़तरे में जान, हिंसक-विध्वंसक हो सकती है। इससे खद्दरधारियों की शामत आनी तय है।

(सर्वाधिकार सुरक्षित : डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, इलाहाबाद; ३ अक्तूबर, २०१८ ईसवी)