कहिए! क्या ख़याल है?

— आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

उनींदी आँखों से वे ख़्वाब चुराये जाते हैं ,
लरजते होठों से इक बात दबाये जाते हैं।
राज़दार चेहरा लिये आये हैं बहुत दूर से,
जनाब आँखों में इक बात छुपाये जाते हैं।
सच दबाकर ही बोला करते हैं जनाब मेरे,
हुजूर हक़ीक़त में इक बात बताये जाते हैं।
ज़िन्दगी बैसाखियों पर चलती रही हरदम,
आज़ाद परिन्दे-सा एहसास जताये जाते हैं।
ख़ामोशी ओढ़कर मिलते हैं वे सलीक़े से,
अंदाज़ क़ातिल है, तबस्सुम बिछाये जाते हैं।
(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १२ अगस्त, २०२० ईसवी।)