सुदामा चरित्र कथा से भक्त हुए भाव विभोर

       हरदोई- श्री राधा कृष्ण धर्माथ सेवा संस्थान के तत्वावधान में आयोजित 12 वी श्रीमद्भागवत कथा में कथा व्यास ओम जी महाराज ने भगवान कृष्ण की लीलाओं का वर्णन किया जिसको सुनकर श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए।वहीं सुदामा चरित्र का वर्णन कर परीक्षित मोक्ष के साथ कथा का समापन किया।यह कथा स्मृति शेष श्रीमती मन्नो देवी पत्नी वृंदावन बिहारी लाल श्रीवास्तव की स्मृति में परम सन्त बच्चा बाबा के पावन सानिध्य में आयोजित हो रही है।
    श्रीमद्भागवत कथा में कथा प्रवक्ता ओमजी महाराज ने सुदामा चरित्र की कथा सुनाई। उन्होंने कहा कि सुदामा श्रीकृष्ण के गुरु भाई और परम भक्त हैं जिन्होंने बिना किसी कामना के परमात्मा में अडिग विश्वास रखते हुए उनकी भक्ति की।कथा व्यास ने भगवान द्वारिकाधीश के विवाहों का वर्णन कर श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। उन्होंने रुक्मिणी हरण भगवान द्वारिकाधीश के सत्यभामा, कालिंद्री, जाम्बबंती आदि से भी विवाहों की कथा विस्तार से सुनाते हुये कहा कि इस प्रकार उन्होंने सोलह हजार एक सौ आठ विवाह किए। उन्होंने सुदामा चरित्र का मार्मिक चित्रण कर श्रोताओं को भावुक कर दिया। उन्होंने कहा कि भगवान द्वारिकाधीश और सुदामा की मित्रता हमें मैत्री संबंधों के साथ आदर्श मित्रधर्म की भी शिक्षा देती है। उन्होंने कहा कि परमात्मा का नाम स्मरण ही कलिकाल में प्राणिमात्र को भवसागर से पार कर देता है। परमात्मा किसी न किसी रूप में इस धरा पर अवतार धारण करते हैं।कथा व्यास बताते हैं कि परमात्मा का वास सब जगह है, बस जरूरत है उसे पहचानने की। जो भी उसे सच्चे मन से याद करता है उसे वे अवश्य ही दर्शन देते हैं।कृष्ण-सुदामा की मित्रता की कथा सुना कर वहा उपस्थित सैकड़ों भक्तों को भाव विभोर हो गए। सुदामा की दयनीय दशा और भगवान में निष्ठा के प्रसंग को सुनकर श्रद्धालुओं की आंखें भर आईं।
       उन्होंने बताया कि यदि सुदामा दरिद्र होते तो उनके लिए धन की कोई कमी नहीं थी । सुदामा के पास विद्वता थी और धनार्जन तो सुदामा उससे भी कर सकते थे मगर सुदामा पेट के लिए नहीं बल्कि आत्मा के लिए कर्म कर रहे थे । वे आत्म कल्याण के लिए उधत थे। उन्होंने कहा कि भागवत जैसा ग्रंथ एक दरिद्र को प्रसन्नात्मा जितेंद्रिय शब्द से अलंक्रत नहीं कर सकता और जिसे भागवत ही परमशांत ही कहती हो उसे कौन दरिद्र घोषित कर सकता है। पत्नी के कहने पर सुदामा का द्वारिका आगमन और प्रभु द्वारा सुदामा के सत्कार पर शास्त्री बोले कि यह व्यक्ति का नहीं व्यक्तित्व का सतकार है, यह चित की नहीं चरित्र की पूजा है । सुदामा की निष्ठा और सुदामा के त्याग का सम्मान है।उन्होंने बताया कि मित्रता में बदले की भावना का स्थान नहीं होना चाहिए।
          भागवताचार्य ने भजनों के माध्यम से प्रभु की अतिकरूणा, कृपा वृष्टि की लीलाओं का श्रवण कर सभी श्रोता भावुक हो गए कथा के दौरान भजनामृत की फुहार पर श्रोताओं का तन-मन झूम उठा। इस मौके पर कथा श्रवण के लिए यजमान के रूप में राष्ट्रीय प्रस्तावना के सम्पादक हरिनाथ सिंह व उनकी धर्मपत्नी अर्चना सिंह रही।कथा में वृन्दाबन बिहारी लाल श्रीवास्तव नवनीत राजीव नवतेज सुनीति कुमार के साथ आयोजक संस्थापक संरक्षक संजीव श्रीवास्तव व निकिता श्रीवास्तव समेत बड़ी तादाद में श्रद्धालु कथा पांडाल में मौजूद थे।