
कछौना, हरदोई। गर्भ से ही बच्चों के कुपोषण को दूर करने के लिए सरकार ने बाल विकास पुष्टाहार विभाग को जिम्मेदारी सौंपी। लेकिन शासन-प्रशासन की उदासीनता के चलते वह खुद कुपोषित है। केंद्रों पर अव्यवस्थाओं का अंबार है।
बाल विकास परियोजना अधिकारी व सुपरवाइजर ब्लॉक मुख्यालय पर निवास नहीं करती हैं। वह प्रतिदिन अप-डाउन करती हैं। पर्यवेक्षण के अभाव में कछौना के दर्जनों केंद्रों पर ताला लटका रहता है। इन केंद्रों पर मूलभूत सुविधाएं नहीं है। दर्जनों केंद्रों पर वजन मशीनें खराब पड़ी हैं। जिससे बच्चों का वजन नहीं हो पा रहा है, जबकि केंद्रों पर वजन दिवस का प्रविधान है। ऐसे में फर्जी रिपोर्टिंग के सहारे वजन दिवस मनाए जा रहे हैं। आंगनबाड़ी कार्यकर्त्रियों को कार्यालय से मिलने वाले पुष्टाहार पर भ्रष्टाचार का दीमक लग जाता है। जिसमें गोदाम क्लर्क से लेकर अधीनस्थ कर्मचारी सुविधाशुल्क लेते हैं।
पोषण माह कागजों पर ही मनाया जाता है। शिशु, गर्भवती, धात्री महिलाओं का कुपोषण दूर नहीं हो पा रहा है। यहां तक कि टीएचआर दिवस पर भी केंद्रों पर ताला लगा रहता है। मेडिसिन किट नदारद है। अभी तक दर्जनों केंद्र किराए के भवनों में संचालित है। यह विभाग अपने उद्देश्यों से भटक रहा है। बच्चों को बैठने के लिए कोई दरी-फर्नीचर की व्यवस्था नहीं है। यहां तक आंगनबाड़ी कार्यकर्त्रियों को बैठने के लिए कुर्सी तक कई केन्द्रों पर उपलब्ध नहीं कराई गई हैं। जबकि सरकार की मंशा के अनुरूप इन केंद्रों को प्रिप्राइमरी के रूप में विकसित किया जा चुका है। प्रिप्राइमरी के तहत आंगनबाड़ी केंद्रों पर नन्हें-मुन्ने बच्चों को खेल-खेल में गतिविधियों पर आधारित शिक्षा दी जाने का प्रविधान है। सरकार की दोहरी मानसिकता का खामियाजा गरीब आम जनमानस को उठाना पड़ता है।
आजादी के 75 वर्ष के बाद भी सरकार स्वास्थ्य शिक्षा अच्छी मुहैया नहीं करा पाई हैं। आखिर! अल्प मानदेय में आंगनबाड़ी कार्यकर्त्रियां योजना को कैसे प्रभावी ढंग से संचालित कर पाएंगी? उनसे कई अन्य विभागों के कार्य समय-समय पर कराए जाते हैं।
मिली जानकारी के अनुसार कस्बा सहित ग्रामीण क्षेत्र के कई केंद्रों पर कार्यर्कत्रियां नियमित नहीं आती हैं। महत्त्वपूर्ण योजना टीकाकरण, पोषण ट्रैकिंग व अन्य गतिविधियां प्रभावित चल रही हैं। गरीब व्यक्ति और गरीब होता जा रहा है। सरकारी मशीनरी अपनी जेब भर रही है। इन समस्याओं के विषय में जिला कार्यक्रम अधिकारी का पक्ष जानना चाहा तो उन्होंने फोन उठाना मुनासिब नहीं समझा। वहीं जनप्रतिनिधि आम लोगों को मुख्यधारा में जोड़ने की बात केवल मंच पर भाषण तक सीमित रहती है।