अब कोलकाता के ‘मनबढ़’ चिकित्सकोँ के साथ कठोरतापूर्वक निबटना होगा

अब कोलकाता मे वहाँ के डॉक्टर धरना-प्रदर्शन के नाम पर ‘गुण्डई’ कर रहे हैँ; उच्चतम न्यायालय के आदेश की भी अवमानना कर रहे हैँ। कोलकाता की रुग्ण जनता, उनके परिवार के लोग आदिक किसी प्रकार के उपचार न होने के कारण पिछले एक माह से त्रस्त हो चुके हैँ; जाने कितने रोगी उपचार के अभाव मे मृत्यु को प्राप्त कर चुके हैँ और बड़ी संख्या मे रोगी जीवन-मरण के बीच झूल रहे हैँ।

सारे चिकित्सकोँ के विरुद्ध कठोर काररवाई की जानी चाहिए; क्योँकि ‘अतिवाद’ सहन नहीँ किया जाना चाहिए। उनका यह कुकृत्य मृत कनिष्ठ महिला के प्रति जो देशभर मे जन-सह-अनुभूति और संवेदना रही है, वह भी मन से हटती जायेगी; क्योँकि यदि किसी चिकित्सालय के समस्त चिकित्सक हड़ताल के नाम पर एक माह से अपने मूल कर्त्तव्य से च्युत दिख रहे हैँ तो यह जनसामान्य के लिए शोचनीय स्थिति है।

उक्त समस्त निर्दय चिकित्सकोँ के विरुद्ध यह शासकीय आदेश प्रसारित कर देना चाहिए– ‘काम नहीँ तो वेतन नहीँ ‘। यदि चिकित्सक अपने मनबढ़ आचरण मे सुधार लाते हुए, अपने कर्त्तव्य का निर्वहण नहीँ करते तो राज्य-शासन को चाहिए कि जितने भी चिकित्सालयोँ के चिकित्सक हड़ताल कर रहे हैँ, उन चिकित्सालयोँ मे ताले लगवा दे और हड़ताल के नाम पर अमानवीय कृत्य करनेवाले चिकित्सकोँ एवं अन्य कर्मचारियोँ को नौकरी से बाहर कर दे।

अब वहाँ की सरकार को चाहिए कि चिकित्सालयोँ मे उपचार, परीक्षण आदिक की ‘वैकल्पिक’ व्यवस्था कराये। यदि चिकित्सक और अन्य जन ‘गुण्डई’ करेँ तो वहाँ के न्यायालय की ओर से तत्काल प्रभाव से उक्त गुण्डोँ को छ: माह के लिए सश्रम कारावास का दण्ड सुनाया जाना चाहिए।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १० सितम्बर, २०२४ ईसवी।)