दिल्ली मॉडल

आज से एक दशक पूर्व तक दिल्ली में डीडीए का फ्लैट निकलना लॉटरी लग जाने जैसा होता था। आज ड्रा में फ्लैट निकला और कल से ब्रोकर पीछे पड़ जाते कि इतने लाख लेकर इसे बेक (बेंच) दो। कुछ रिजर्व कैटेगरी के मालदार लोगों ने तो इसे धंधा बना लिया था। भाई, मौसी, नानी, बुआ फूफा के नाम पर अप्लाई करते और फ्लैट निकल आता तो बेक कर मजे करते।

डीडीए के फ्लैट के प्रति अपार आकर्षण का कारण यह था कि रियल एस्टेट के मामले में दिल्ली जैसे महा फ्रॉड शहर में इन फ्लैटों का टाइटल क्लियर रहता था । दूसरी बात यह कि डीडीए के फ्लैट कम से कम तीन तरफ खुले होते थे यानी प्रॉपर वेंटिलेशन होता था और पार्किंग की भी व्यवस्था होती थी। इसके अलावा इन फ्लैट के आसपास की खाली जमीन पार्क, मॉल आदि बनाने के लिए खुली छोड़ दी जाती थी ।

इन खाली जमीनों पर अवैध कब्जा तो पहले भी होता था लेकिन जब से उत्तर प्रदेश और बिहार में सामाजिक न्याय वाली सरकार आईं तब से इन पर लोकल जाट गुर्जरों के अलावा यूपी , बिहार के भैया लोगों ने भी धड़ल्ले से कब्जा करना शुरू कर दिया। पहले एक परिवार कब्जा करता फिर अपने भाई-भतीजों, गोतिया, रिश्तेदारों को ले आता। शांतिदूतों को इसकी जरूरत न पड़ती । वह हम चार, हमारे चालीस करके अपने दम पर मुहल्ला बसा लेते थे। सेक्युलर सरकारों के कारण बांग्लादेश, म्यांमार से भी शांतिदूत दिल्ली में आकर दामादों की तरह बसने लगे।

जहां पर यह अवैध झुग्गियां बसती, वहां पर 40 फ़ीट की सड़क कुछ ही वर्षों में 10 फ़ीट की हो जाती। अपराध, लूटमार, नशे का कारोबार बढ़ जाता। सड़क पर खुलेआम हलाल मांस बिकने लगता तथा सड़क को कब्जा करके अवैध मजहबी स्थल बन जाते, जिनसे दिन-रात लाउडस्पीकर से तेज़ कर्कश आवाज आती रहती । इस अवैध कब्जे से पुलिस, mcd और dda की चांदी हो जाती। उनकी जेब गर्म होने लगती लेकिन अपने जीवन भर की कमाई लगाकर डीडीए फ्लैट खरीदने वाले लोगों का जीवन नर्क हो जाता।

अगर संजय गांधी जैसा कोई नेता होता तो रातों रात बुलडोजर चलवाकर सरकारी जमीनों को खाली करवा लेता, अवैध कब्जा करने वालों से जुर्माना भी वसूलता। लेकिन दिल्ली का दुर्भाग्य यह कि पिछले एक दशक से राज्य में कट्टर ईमानदार और केंद्र में कट्टर राष्ट्रवादी सरकार रही है। दिल्ली के पढ़े लिखे मुख्यमंत्री ने अवैध कब्जेदारों को वोट बैंक की राजनीति के चलते मुफ्त बिजली , पानी और तमाम सरकारी सुविधाएं प्रदान की तथा केंद्र सरकार की भृष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस रखने वाली सरकार ने सरकारी जमीन पर अतिक्रमण करने वालों को टैक्स पेयर्स की गाढ़ी कमाई से फ्लैट बनाकर दिए। केंद्र सरकार के एक मंत्री ने तो रोहिंग्या घुसपैठियों के लिए अलग कॉलोनी तक बनाने की घोषणा कर दी थी, हालांकि बाद में उन्हें अपना बयान वापस लेना पड़ा।

तुर्रा यह कि जिस भृष्टाचार और नाकामी के लिए केंद्र और राज्य सरकार को दिल्ली और पूरे देश से माफ़ी मांगनी चाहिए, उसे वे अपनी उपलब्धि बता रहे हैं। उन नाकामियों को अपने वचन पत्र और गारंटी पत्र में शामिल कर रहे हैं।

सब मिले हुए हैं जी??

(विनय सिंह बैस)