हिन्दी-भाषा को समझने के लिए शब्द-साधना करनी होगी – आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय ‘प्रौद्योगिकी संस्थान इलाहाबाद’, प्रयागराज की ओर से २५ सितम्बर को संस्थान के सभागार मे हिन्दी-पखवाड़े के अन्तर्गत एक कर्मशाला का आयोजन किया गया।
चित्र-विवरण :– सभागार मे उपस्थित प्रशिक्षणार्थी हिन्दीभाषा-बोध करते हुए।
आरम्भ मे दीप-प्रज्वलन कर कर्मशाला का उद्घाटन किया गया। इस आयोजन मे भाषाविज्ञानी आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय और आयकर-विभाग के वरिष्ठ अनुवादक मकरध्वज मौर्य प्रशिक्षक के रूप मे निमन्त्रित किये गये थे। आरम्भ मे संस्थान मे सहायक निदेशक (राजभाषा) प्रमोद द्विवेदी ने स्वागत करते हुए कहा, “भाषा के साथ भाव होना चाहिए। भाषा मे स्वच्छता लाने की आवश्यकता है।”
मकरध्वज मौर्य ने अपने विस्तृत आलेखोँ के माध्यम से सरकारी कामकाज मे टिप्पणी और आलेखन के महत्त्व को बताया।
आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने कहा, “आप सबको उच्चारण एवं लेखन के प्रति शुद्धता बरतनी होगी; क्योँकि ऐसा न करने से आपका कथ्य और तथ्य प्रभावकारी नहीँ रहेँगे। आप यदि समझते होँ कि हिन्दी हस्तामलक वा बायेँ हाथ का खेल है तो आप अपने अतिरिक्त विश्वास का प्रदर्शन करते हैँ। हिन्दीभाषा को समझने के लिए शब्द-साधना करनी होगी।”
आचार्य ने इस अवसर पर संस्थान के प्रशिक्षणार्थियोँ को सबसे पहले ‘भाषा’ शब्द का शुद्ध उच्चारण कारणसहित समझाया, तत्पश्चात् उन्होँने ‘कार्यशाला’ और ‘कर्मशाला’ मे जुड़े शब्दोँ ‘कार्य’ और ‘कर्म’ मे सोदाहरण अन्तर सुस्पष्ट करते हुए, ‘कर्मशाला’ को उपयुक्त शब्द सिद्ध किया। उन्होँने पंचमाक्षरोँ के महत्त्व तथा अनुस्वार और अनुनासिक का कब और कहाँ व्यवहार किया जाता है, लिखकर और उच्चरित कर समझाया; प्रशिक्षणार्थियोँ से भी उच्चारण कराया। उन्होँने सुस्पष्ट किया कि जो लोग अनुस्वार की पहचान बिन्दी के स्थान पर शून्य (०) का प्रयोग करते आ रहे हैँ, वे लोग अपनी मूढ़ मति का परिचय दे रहे हैँ; क्योँकि अनुस्वार का प्रयोग पंचमाक्षरोँ और तत्सम शब्दोँ मे ही किया जाता है, जबकि तद्भव शब्दोँ और बोलियोँ मे केवल अनुनासिक का व्यवहार किया जाता है। आचार्य ने अल्पप्राण-महाप्राण, स्पर्श व्यंजन, उपविरामचिह्न, योजकचिह्न, निर्देशकचिह्न, विवरणचिह्न, एकल उद्धरणचिह्न, युगल उद्धरणचिह्न तथा लगभग समस्त विरामचिह्नो का सकारण प्रयोग समझाया। आरोपी-आरोपित, लिए-लिये, गया, गयी, गये-गया, गई-गए, चाहिए-चाहिये, रुपये-रुपये, विज्ञानी-वैज्ञानिक, फूल-कली, सर्जन-विसर्जन, हुए-हुये, गये-गए, उपरोक्त-उपर्युक्त, महोदय,-महोदय!, प्रावधान-प्रविधान आदिक शताधिक शब्दोँ मे कौन-सा शुद्ध है और कौन-सा अशुद्ध कारणसहित बताया-समझाया तथा प्रशिक्षणार्थियोँ से लिखवाया। इनके अतिरिक अनेक व्याकरणीय पक्षोँ को बहुविध समझाते हुए, एक आदर्श कर्मशाला की उपयोगिता-महत्ता का बोध कराया।
समापन के उत्तरार्द्ध मे आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय और मकरध्वज मौर्य को नारिकेल और स्मृतिचिह्न भेँटकर सम्मानित किया गया। संस्थान के अधिकारी डॉ० सत्यजीत कुमार ने आभार-ज्ञापन किया। अन्त मे, राष्ट्रगान का गायन कर, कर्मशाला का समापन किया गया। प्रशिक्षणार्थियोँ मे उत्साह देखते ही बन रहा था।