आग लगाने की सज़ा

विनय सिंह बैस (अनुवाद-अधिकारी, लोकसभा सचिवालय)–

बहुत समय पहले की बात है। तब मैं 6-7 साल का रहा होऊंगा!

उन दिनों ज्यादातर घरों में भोजन पकाने के बाद आग को राख से ढक दिया जाता था। अगली बार भोजन पकाने के लिए राख को हटाकर इसी आग का उपयोग भोजन पकाने के लिया किया जाता था। हां, बीच मे हुक्का, गांजा पीने वाले भी आग मांगने आ जाया करते थे। औरते राख को किसी वजनी बर्तन से दबा दिया करती थी क्योंकि तेज हवा चलने पर यही आग कई बार फूस के छप्परों में आग लगने का कारण भी बन जाया करती थी।

माचिस उस जमाने मे लक्ज़री वस्तु हुआ करती थी। किसी-किसी के पास ही पायी जाती थी।

मेरे तीसरे नम्बर वाले बाबा बीड़ी पीते थे। कई बार 25 पैसे देकर दुकान से बीड़ी- माचिस मंगाते। 20 पैसे की ‘बालक छाप’ बीड़ी और पांच पैसे की’ रूबी या चाबी ब्रांड’ माचिस।

बीड़ी तो नहीं लेकिन माचिस मुझे बड़ा आकर्षित करती थी। उसको जलाने से वैज्ञानिक जैसी फीलिंग आती थी गोया कि हमने आग का आविष्कार कर दिया। माचिस की डिब्बी भी बड़ी रंगीन हुआ करती थी, उस पर सुंदर, मनभावन तस्वीरें छपी रहती थीं। तीली को माचिस पर रगड़ने से आने वाली गंध भी मुझे विशिष्ट लगती थी।

एक बार मेरे गांव के ही एक रिश्तेदार के यहां शादी थी। उन्होंने बारात में जाने के लिए चुलिहा नेवार (सपरिवार) निमंत्रण दे रखा था। हमारा परिवार कुछ ज्यादा ही बड़ा था इसलिए बस की क्षमता और जनाती की इज्जत को ध्यान में रखते हुए परिवार के कुछ बडे लोग ही बारात में जा रहे। किसी भी बच्चे को नहीं ले जाया जा रहा था। बाकी बच्चे तो मान गए, लेकिन मैं नंगा गया। जिद करने लगा तो पापा को मेरे ऊपर दया आ गई। बोले –
“इस बार मान जाओ , अगली कोई भी बारात होगी तो तुम्हें पक्का ले चलूँगा। फिलहाल ये 10 पैसे लो और कुछ खा लेना।”

मैं 10 पैसे लेकर दुकान गया। पांच पैसे के चार कम्पट (लेमनचूस) खरीदे और पांच पैसे की कैलेंडर के नीचे स्टेपल की हुई चूरन की पुड़िया खरीदने ही वाला था कि मेरी नजर माचिस पर पड़ गई। मैंने कहा, “पांच पैसे की माचिस दे दे।”

“बाबा ने मंगाया है?? बीड़ी नहीं मंगाई?” दुकानदार ने पूछा
“हां बाबा ने मंगाई है। बीड़ी अभी है, सिर्फ माचिस चाहिए।” मैंने झूठ बोल दिया।

अब चूंकि मेरे पास खुद की माचिस थी तो मैं उस से एक्सपेरीमेंट करने लगा। एक तीली जलाने की कोशिश की, लेकिन वह टूट गई। दोबारा कोशिश की तो वह जली तो लेकिन तुरत ही हवा से बुझ गई। दो- चार तीली और जलाकर मैंने तीली जलाने में निपुणता हासिल कर ली।एक स्टेप पूरा हुआ।

खाली तीली बहुत जला ली, अब इससे कुछ आगे बढ़ना चाहिए। पड़ोसी वाले बाबा के घर के सामने बहुत सी पतावर बंधी रखी थी। मैंने एक ही बार मे तीली जलाई और उसमें आग लगा दी। आग लगाकर बड़ा मजा आया। कुछ समय बाद आग धीरे- धीरे बढ़ने लगी। मैंने पहले तो एक लकड़ी से, फिर मिट्टी डालकर आग बुझाने की कोशिश की। लेकिन तब तक आग फैल चुकी थी। छप्पर से ढके हुए मुहल्ले के सारे घर एक दूसरे से जुड़े हुए थे। एक घर मे आग लगने का मतलब था कि पूरे मुहल्ले और संभव है कि गांव भर में भी आग लग जाये। यह सोचकर मैं रोने और चिल्लाने लगा। खैर लोग दौड़ कर आए और थोड़े प्रयासों के बाद आग बुझा दी गई।

मैं अपराधी सा एक कोने में छिपा हुआ था। भीड़ का फायदा उठाकर मैंने खिसकने की कोशिश की लेकिन छोटे बाबा की नजर मुझ पर पड़ गई। मैं पूरी दम लगाकर भागा और बाबा पीछे -पीछे भागे। तकरीबन 50 मीटर तक तो मैं लीड लिए रहा लेकिन फिर हार गया। बाबा ने कॉलर पकड़ी और एक झन्नाटेदार झापड़ रसीद कर दिया।
“तुम्हें बारात जाने को नहीं मिलेगा तो तुम गांव फूंक दोगे” वो गुस्से से बोले!

खैर! बात आयी-गयी हो गई। चूंकि मुझे नौकरी जल्दी मिली थी इसलिए मेरे लाख मना करने के बावजूद पापा ने मेरी शादी भी जल्दी ही कर दी। शादी के कई साल बाद, एक दिन जब पापा बहुत ही अच्छे मूड में थे तो मैंने पापा से हिम्मत करके पूछ लिया, “पापा, इतनी क्या जल्दी पड़ी थी मेरी शादी करने की? मैं कहीं भागा जा रहा था या कोई आशंका थी मुझको लेकर?

“भागे तो तुम कहीं नहीं जा रहे थे लेकिन एक बार किसी दूसरे की शादी में नहीं ले गए थे तो तुमने गांव ही फूंक डालने की कोशिश की थी। कहीं तुम्हारी शादी में देर करते तो तुम पता नहीं क्या फूंक डालते?” पापा ने मुस्कराते हुए जवाब दिया।

मैं लाजवाब हो गया; पितृदिवस पर॥

#पितृदिवस