सई नदी की करुण कथा : पौराणिक और ऐतिहासिक नदी मर रही है

‘सर्जनपीठ’ का राष्ट्रीय ‘राग-रंग’ सम्पन्न

गले लगा करके सभी, महको जैसे फूल

२२ मार्च की तिथि प्रयागराज के लिए रंगमयी रही, जो इन्द्रधनुषी रंग से उत्तरप्रदेश से लेकर पूर्वोत्तर-राज्यों तक को रँगती हुई प्रतीत हो रही थी। होली लौट चुकी है; परन्तु उसकी खुमारी अब भी मौजूद है, जिसे २२ मार्च को ‘सारस्वत सदन’, अलोपीबाग़, प्रयागराज से ‘सर्जनपीठ’ की ओर से प्रसारित आन्तर्जालिक राष्ट्रीय आयोजन ‘राग-रंग’ मे अनुभव किया गया था।

देवरिया से इन्द्रकुमार दीक्षित होली के निष्कर्ष को अपने ही अन्दाज़ मे सामने लाते दिखे― कि फूलों की सुगन्धों से सजा मधुमास होली मे, भर आता दिलों मे प्यार का एहसास होली मे।
निबन्धों मे कसे अनुबन्ध सारे टूट जाते हैं, बिखर जाता है योगी का भी योगाभ्यास होली मे।

शिलांग, मेघालय से डॉ० अनीता पण्ड्या ने मुक्त भाव से होली के रंग मे रँग जाने का आह्वान इस रूप मे किया― खोल दिलों के दरवाज़े को, निजता से बाहर आओ। इस झूमती वासन्ती बयार मे, सबको फागुन-राग सुनाओ।

विश्वनाथ, असम से सैयदा आनोवारा ख़ातून ने अपनी कविता के माध्यम से मनोरम आह्वान किया― आयी फागुन की बहार, उड़े रंगों की फुहार। आओ! झूमे, नाचे, गायें, मनायें ख़ुशियों का त्योहार।

बिलारी मुरादाबाद से नवलकिशोर शर्मा ‘नवल’ का यह सद्भावना-संदेश मन को छू गया― रंज़िश वा तकरार हो, जाना उसको भूल। गले लगा करके सभी, महको जैसे फूल।

प्रयागराज से उर्वशी उपाध्याय रंगों की प्रश्नमयी बौछार ख़ूबसूरती के साथ करती प्रतीत हो रही थीं― भूल गये हैं ठण्ढई और फगुआ के गीत, अमराई मे प्रीत था, रिश्तों मे संगीत।

ग़ाज़ीपुर से डॉ० संगीता बलवन्त की इन पंक्तियों से यही प्रतीत हो रहा था, मानो एक मा अपने बच्चे को रंग खेलने जाने से पहले सीख सिखा रही हो― नफ़रत के रंग से, बेरंग न करना होली। गिले-शिकवे भूलकर, मीठी रखना बोली।

संयोजक आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय प्रयागराज ने आदर्श रंगदर्शन को इस प्रकार निरूपित किया― राग-रंग उत्सव बना, मन लगता है तंग। तन को तन से छोड़कर, मन से मन ले रंग।।

गोण्डा से घनश्याम अवस्थी होली की विकृतियों को इस तरह से उद्घाटित करते हैं― होली के हुड़दंग मे, बजा-बजाकर ढोल। उड़ा रंग के साथ मे, डीज़ल औ’ पेट्रोल।।

प्रयागराज से प्रो० रविकुमार मिश्र ने समयसत्य ‘रंग-दर्शन’ प्रस्तुत किया― जीवन के हर रंग को, जतन से देखना आ जाये तो होली है। भेद-भाव से ऊपर उठकर, इन्द्रधनुष गढ़ना आ जाये तो होली है।

प्रयागराज की सरिता मिश्र होली मे अपनत्व की तलाश करती हुई दिखीं― बचपन से अबतक होली देखी,
श्याम-सा श्याम रंग मिला नहीं।
सारा रंग लगा और धुल गया,
अपनत्व प्रेम-सा रंग मिला नहीं।

रायबरेली से आरती जायसवाल ने सौमनस्य का आह्वान इस प्रकार किया― प्रेम के रंग मे रँगे हर एक मन, होली-मिलन मे जगी यह आस। ईष्या-द्वेष मिट जाये सब, जीवन मे घुल जाये मिठास।

अन्त मे, संयोजक आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने समस्त कवि-कवयित्रियों के प्रति अपना कृतज्ञता-ज्ञापन किया।