प्यारी-न्यारी लगती सन्ध्या

— आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

श्याम-सलोनी आती सन्ध्या,
सबके मन को भाती सन्ध्या।
पश्चिम में जब लाली छाती,
मन्द-मन्द मुसकाती सन्ध्या।
पुरवा-पछुआँ ताल लगाते,
तिनक धिनन-धिन् गाती सन्ध्या।
चन्दामामा! देर में आना,
हमको बहुत है भाती सन्ध्या।
चीं-चीं चूँ-चूँ चिड़ियाँ करतीं,
थिरक-थिरक इतराती सन्ध्या।
रात की बारी अब है आयी,
लुकती-छिपती जाती सन्ध्या।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १२ जुलाई, २०२० ईसवी)