एक अभिव्यक्ति

पृथ्वीनाथ पाण्डेय

एक–
तिल का ताड़ दिखने लगे हक़ीक़त में,
सोचना, दिमाग़ का ज़ंग अभी बाक़ी है।
दो–
कुछ अलग हटकर सोचा करो साहिब!
यहाँ जितने हैं ‘रेडीमाल’ बेचा करते हैं।
तीन–
तिनके-तिनके जोड़कर आशियाँ बनाये हैं,
मिजाज़ तूफ़ाँ के बदले-से नज़र आते हैं।
चार–
कुछ कह दो बारीक़ी से ही सही,
निगाहों का भ्रम पालने में झूल रहा।

(सर्वाधिक सुरक्षित : पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; ११ मार्च, २०२० ईसवी)