क्या ज़ंग लग गयी, तुम्हारी जवानी में?

— आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

जी चाहता, आग लगा दूँ अब पानी में,
जी चाहता, ज़ह्र भर दूँ अब बानी में।
‘इन्क़िलाब’ बोलने से कतराते क्यों?
क्या ज़ंग लग गयी, तुम्हारी जवानी में ?
हवा को पकड़ रुख़ बदल देता हूँ यों,
जब धार कर देता हूँ, उसकी रवानी में।
हर किरदार मेरे अपने ही होते यहाँ,
जो बा-असर दिखते, हर कहानी में।
कुछ सुन, पढ़, कुछ लिख तो प्यारे!
कुछ हासिल नहीं है, इस नादानी में।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २० जून, २०२० ईसवी)