बंटवारा

आओ भईया खेत खाली, व्यापार सीजन ऑफ है।
अपना तुम हिस्सा बंटा लो, जो हमारे पास है।

माता पिता ने जो संजोया, आपका अधिकार है।
जो भी हिस्से में मिले, सबको वही स्वीकार है।।

घर – खेत बांटो और गृहस्थी, बैंक का भी देखना।
व्यापार और व्यवहार बांटो, चल अचल का लेखना।

घर का मुखिया बड़ा भाई, आज वह मजबूर है।
ना चाहते भी वह करे, दुनिया का यह दस्तूर है।।

बेईमान कहलाता वही, खेती बिजनेस जो करे।
लाभ के संग हानि होती, जो न कोई चित धरे।।

सिर्फ भौतिक साधनों से, सुख नहीं मिल पाएगा।
अपनों बिन सूना सफर, रह रह के मन पछताएगा।।

‘परदेशी’ कहता हिस्सा बांटो, दिल नहीं दल बांटना।
वस्तु का एवरेज लगा लो, बेकाम कर ना काटना।।

रचयिता:- सुधीर अवस्थी ‘परदेशी’
कवि/लेखक, पत्रकार (हिन्दुस्तान)
राष्ट्रीय प्रवक्ता:- सनातन धर्म प्रचार महासभा
ब्लाक अध्यक्ष अहिरोरी:- हरदोई पत्रकार एसोसिएशन