कुछ शे’र सुनाता हूँ, जो मुझसे मुख़ातिब हैं

★ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

एक–
तुम बहार बनकर छाते रहो,
ख़ुद को पतझर मुबारक करता हूँ।
दो–
ले गये सब यहाँ से रजनीगन्धा,
मेरे हक़ में नागफनी छोड़ आये हैं।
तीन–
आँखों में आँखें डाल बातें सीखो,
मुखौटा हटाओ तो कोई बात बने।
चार–
ज़ख़्म अभी ताज़ा है, एहतियात बरत,
यहाँ मरहम नहीं, ताने मिला करते हैं।
पाँच–
नायाब चाल चल दी है, इस ज़माने ने,
हवा की साज़िश है, जो छूकर अभी गुज़री है।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १७ जुलाई, २०२१ ईसवी।)