मै और मेरा मौन

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

मै मौन हूँ।
तेरा मौन और मेरे भीतर के
उमड़ते-घुमड़ते मौन मे
एक बहुत अधिक फ़र्क़ है :–
तू चुप्पी को पीता रहता है
और मै,
तुझे पीता रहता हूँ।
दोनो के पीने मे फ़र्क़ है :–
तू पी-पीकर कोसता है
और मै तुझे भस्मासुर बनाता जाता हूँ।
यक्ष और यक्षिणी का मौन संवाद
याद है तुझे?
मेघ की गर्जना भी नहीं कर पाया
उसका मौन-भंग।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १९ जून, २०२२ ईसवी।)