
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
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एक–
ऐ मेरे गीत!
तुझे जन्म तो दे देता हूँ;
पर गा नहीं पाता।
मेरा पौरुष,
रोने के आवेदनपत्र पर–
हस्ताक्षर नहीं करता।
दो–
कभी इधर देखूँ,
कभी उधर।
पसीने से हो जाता हूँ–
तर-ब-तर।
तीन–
अनुभूति की गहराई मे
डूब जाता हूँ, भीतर तक;
मेरा स्वयं,
राहित्य से जुड़ पाता नहीं।
अपने और पराये का भेद–
मिटता है; पर दिखता नहीं।
चार–
मेरी कायिक दुर्बलता
प्रश्न करती है, मानसिक सबलता से :–
तू क्षणप्रभा-सी दमकती है;
अपने विस्तार की योजना बताती नहीं।
मै संकुचित-सी रह आती हूँ।
(सर्वाधिकार सुरक्षित― आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २१ अगस्त, २०२३ ईसवी।)