अव्यक्त April 16, 2022 कविता 0 Share this on WhatsAppअमित द्विवेदी- एक पाषाण सा है मेरा अंतस जब कलम की नोक से तराशता हूँ तो साकार हो जाते है कई अनसुलझे रिश्ते कुछ अनकहे। Share this on WhatsApp poem