प्रांशुल त्रिपाठी :
मां से बढ़कर इस दुनिया में मेरा कोई नहीं ,
जब भी मैं रोया तो चुप कराई वहीं ।
अपने दिल में छुपा कर हमें रखती थी वो ,
लोगों की नजरों से बचाने के लिए ।
हमेशा हमारे माथे में काला टीका लगाती थी वो ,
हाथ पकड़ कर चलना उसने सिखाया मुझे ।
हर एक बार गिरने से उसने बचाया मुझे ,
कभी गलती की अगर , तो डांट कर समझायी थी वो ।
हर एक मुश्किल को पार करना सिखाया मुझे ,
दुनिया से कैसे लड़ना है यह भी बतायी मुझे ।
खुद भूखी रहकर पेट भर खिलायी मुझे ,
ठंडी में भी खुद गीले में सोकर सूखे में सुलायी मुझे ।
मेरे लिए रात रात भर जगती थी वो ,
अगर मैं कभी रोता तो दूध भी पिलाती थी वो ।
मुझे चोट लगती अगर तो मुझसे भी ज्यादा रोती थी वो ,
अगर कांटा भी चुभ जाता था मुझे तो हर एक भगवान को मनाती थी वो ।
पढ़ी-लिखी नहीं थी फिर भी पढ़ाती थी वो,
मुझे बड़ों का सम्मान और छोटों को प्यार सिखाती थी वो ।
मां मेरी दुनिया और मेरा हर एक संसार है ,
मां तू ही मेरा भगवान और तू ही मेरा प्यार है ।