जिसकी तुलना किसी से न की जा सके वो है “प्रेम”

सुलेखा सुमन (भागलपुर, बिहार) :

प्रेम व्यक्ति की भावनाओं का
गहरा सागर है ।
जिसमे डूबकर मनुष्य
सच्चाई की मार्ग पर चलता है।
जिसकी व्याख्या करना असम्भव है
वो है प्रेम।
प्रेम वो सत्य है, जो सब कुछ असत्य होने का परिचय देता है।
प्रेम वो अलौकिक एहसास है
जो दिमाग़ से नहीं हृदय से होता है।
हमारे हृदय को स्पर्श कर
प्रेम हमे खुद से अवगत कराता है।
जो शब्द बिना कहे
आँखो से व्यक्त हो जाये
वो है प्रेम।
प्रेम स्वतंत्र है,
जैसे स्वतंत्र है ये आसमान।
प्रेम हमे सबका हित करना सिखाता है
अंधकार को खत्म कर
प्रकाश के मार्ग पर ले जाता है।
प्रेम है तो जग है
प्रेम नहीं तो कुछ भी नहीं
सम्पूर्ण सृष्टि का आधार है प्रेम
हृदय से हृदय का संवाद है प्रेम।
प्रेम में कोई बंधन नहीं होता
इससे हर कोई बिन बांधे बँध जाता है।
इसमें कोई स्वार्थ नहीं होता
निस्वार्थ होता है प्रेम।
प्रेम में कुछ पाने की चाह नहीं होती
सर्वस्व समर्पित का भाव रखता है प्रेम।
ये वो भाव है जो
राधा के प्रति कृष्ण का था
जो राम के प्रति सबरी का था।
जिसकी तुलना किसी से ना
की जा सके
वो है प्रेम।