क्या रामराज में सतयुगीन वर्णाश्रमधर्म लौट आया था?
गोस्वामी तुलसीदास ने तो लिखा था…!
यदि रामराज आ चुका था तो रामराज को पुनः लाने की बात गांधीजी कैसे कहते थे..?
उत्तर :-
दुनिया को ‘रामराज्य’ की नहीं ‘न्यायराज्य’ की जरुरत है।
सतयुग में कभी न्यायराज्य स्थापित था।
किन्तु न्यायधर्म की उपेक्षा के कारण जब सतयुग का ह्रास हुआ तो राम ने पुनः न्यायराज्य को प्रतिष्ठित करने का प्रयास किया ऐसी मान्यता है।
कुछ सुधार व परिवर्तन अवश्य हुआ
किन्तु सतयुग नहीं आया।
बल्कि कुछ समय बाद ही सब कुछ नर्कतुल्य हो गया था।
जातिवाद शिखर पर था।
राज्यवाद, वंशवाद का आतंक था।
दासप्रथा विद्यमान थी।
दास ख़रीदे और बेचे जाते थे।
दहेज में भी दास का लेन-देन होता था।
न्यायशील जनाधिकारों और मानवाधिकारों का खुला हनन होता था।
एक राजवंश दूसरे राजवंश का नाश करके सत्ता पर अन्यायपूर्वक कब्जा करता था।
अपात्र रहते हुए भी पीढ़ी दर पीढ़ी जाति वंश के आधार पर राजगद्दी हथियाई जाती थी।
स्त्रियों को समान अधिकार प्राप्त नहीं थे।
निर्दोष एवं गर्भवती स्त्री को भी जंगल में छोड़ा जा सकता था।
निर्दोष गन्धर्व सैनिकों का वध करके उनकी राजगद्दी छीनी जा सकती थी।
राम से अधिक विकसित व्यक्तित्व कृष्ण का था।
यद्यपि कृष्ण के समय भी बात नहीं बनी। न्याय स्थापना के बजाय अन्याय से लड़ने में ही सारा समय नष्ट हो गया।
व्यक्ति में सत्य,
परिवार में प्रेम,
समाज में न्याय और
समष्टि में पुण्य ही आवश्यक सनातन धर्म है जो स्थापित नहीं हो सका।
चाणक्य के समय भी यह सतधर्म नहीं स्थापित हो पाया।
उस समय भी सामाजिक और राजकीय गंदगी शिखर पर थी।
विवेकानन्द, दयानंद, गांधी, सुभाष के समय भी बुरा हाल था।
आधुनिक संतों के समय भी बुरा हाल है। एक ओर घाटी तो दूसरी ओर पर्वत खड़े होते जा रहे हैं।
चारों ओर चोरी, लूट, आतंक, हत्या, बलात्कार, भ्रष्टाचार, कालाधन, झूठ, धोखा, अशिक्षा, बेरोजगारी, गरीबी, पिछड़ापन, भय, आतंक, उपद्रव व्याप्त है।
मुद्रा पर ब्याजखोरी की दुष्प्रथा शिखर पर है।
व्याज के बोझ और गरीबी के भार से दबकर लाखों की संख्या में किसान आत्महत्या कर रहे हैं।
समाचारों में अक्सर पढ़ने को मिल जाता है कि दुनिया की 99% सम्पत्तियों पर दुनिया के मात्र 1% लोगों का कब्जा है।
घोर विषमता व्याप्त है।
जबकि रामराज में तो
“वैर न करू काहू सन कोई।
रामप्रताप विषमता खोई।।”
की चौपाई पढ़ने को मिलती है।
लेकिन अब कहाँ है यह रामराज्य..??
फ़िलहाल तो धर्म के रूप में सब कुछ ध्वस्त ही है ऐतिहासिक रूप से।
अब तक हज़ारों वर्षों से अन्यायपूर्वक यही सब कुछ चलता आया है।
बुद्ध, महावीर, जीसस, मुहम्मद, कबीर, नानक, दयानंद, विवेकानंद, गांधी, हेडगेवार, श्रीरामशर्मा, ओशो, राधास्वामी, निरंकारी इत्यादि सब महापुरुषों के सत्प्रयासों का हाल बेहाल है और उनके अधिकॉंश अनुयायी बदहाल पड़े हुए हैं प्रमाणिक रूप से।
हर सम्प्रदाय के 5% आपराधिक प्रवृत्ति के लोग शेष 95% सामान्य जनों का जीवन संकट में डाले हुए हैं।
सिद्धान्त-सभ्यता-संस्कृति-संसाधन इत्यादि न्यायशील राष्ट्र स्थापना से पूर्व सब कुछ ध्वस्त ही है ऐतिहासिक रूप से।
सनातन सत्धर्म तो गायब ही है कई हज़ार वर्षों से।
सनातन धर्म के चारो आधार खो गए हैं।
सत्य, प्रेम, न्याय, पुण्य सर्वत्र उपेक्षित हैं।
सतयुग में तो सतधर्म के ये चारों चरण व्याप्त थे-
“चतुष्पात् सकलो धर्मः।”
फिर अपराधियों ने धर्म के चारो चरण नष्ट कर डाले।
किन्तु अवश्य ही सब कुछ होगा अब।
अपने चारों चरणों सहित सत्धर्म वापस लौट आया है धरती पर सतयुग से अभी वर्तमान में।
सनातन धर्म पुनः जीवित होगा अब इसी सदी में।
सत्धर्म के स्वास्तिकाकार चार आयामी सूर्य को किसी ग्रहण से दबाया-छिपाया नहीं जा सकता।
सत्य-प्रेम-न्याय-पुण्य का सनातन सत्धर्म वापस आ पहुचा है।
अब पुनः सभी धर्मों का एकीकरण होगा।
सबकी भाषा अब एक होगी।
सबका राष्ट्र भी अब एक होगा।
“विश्वबंधुत्व” और “वसुधैव कुटुम्बकम्” का चिरपुरातन स्वप्न अब साकार होगा।
अन्धकार का अंत होगा।
सत्धर्म का सूर्योदय पूर्व में पुनः हो रहा है।
सारी धरती एक परिवार होगी।
इसी सदी में।
5% पापियों का अंत होगा।
वे सब शुद्धि को प्राप्त होंगे।
अशिक्षा, गरीबी, पिछड़ापन और भय का अंत होगा।
अब सभी को शिक्षा, रोजगार, सुविधा, संरक्षण समान रूप से न्यायपूर्वक सुलभ होगा।
यह सदी धरती की स्वर्णिम सदी सिद्ध होगी।
मनुष्यों में ही मानवत्व और देवत्व का उदय होगा।
दोष, दरिद्रता, दुःख और दासता का अंत होगा।
आप सबके छोटे-छोटे हांथों से ही बड़े-बड़े कार्य सम्पन्न होंगे।
“सर्वे भवन्तु सुखिनः” की उक्ति चरितार्थ होगी।
अवश्य..अहो भाग्य…!!!
न भूतो न भविष्यति जो कभी किसी ने न देखा न किया वह भी सब कुछ होगा और दिखेगा भी।
गूंज उठेगीं दशों दिशाएं इंकलाब के नारों से।
खुश होगी अब सारी दुनिया दूर सभी अंगारों से।।
✍️🇮🇳 (राम गुप्ता – स्वतन्त्र पत्रकार – नोएडा)