“रामराज की स्थापना के लिए क्षुद्र स्वार्थ से ऊपर उठना होगा”– डॉ० प्रकाश चिकुर्डेकर

‘सर्जनपीठ’, प्रयागराज की ओर से २१ जनवरी को ‘सारस्वत सदन’, अलोपीबाग़, प्रयागराज की ओर से ‘रामराज की प्रासंगिकता : वर्तमान संदर्भ मे’ विषय पर एक आन्तर्जालिक राष्ट्रीय बौद्धिक परिसंवाद का आयोजन ‘सारस्वत सदन’, प्रयागराज से किया गया।

मुख्य अतिथि के रूप मे शासकीय महाविद्यालय, दमोह (मध्यप्रदेश) मे हिन्दी-विभागाध्यक्ष आशा राठौर ने बताया– भारतीय जन-जीवन मे रामकथा की व्याप्ति हमारे सांस्कृतिक इतिहास की महत्त्वपूर्ण कड़ी है। भारतभूमि का प्राणिमात्र राम के व्यक्तित्व-कर्त्तृत्व से अनुप्रेरित एवं अनुप्राणित है। रामराज का आदर्श और यथार्थ सार्वकालिक और सार्वभौमिक रहा है। रामराज ऐसा शासनकाल था, जहाँ सब संयमित जीवन जीते थे; परस्पर कटुता, वैमनस्य, ईर्ष्या आदि के लिए कोई स्थान नहीं था, जबकि आज पाखण्ड का बोलबाला है। ऐसे मे रामराज की की छाया भी देश पर पड़ जाये तो सबका उद्धार हो जायेगा। आज आवश्यकता इस बात की है कि हम केवल श्री राम के चित्र को न पूजें, वरन् उनके आचरण को जीवन मे अपनायें।

अध्यक्ष के रूप मे यशवन्तराव चह्वाण, वारणा महाविद्यालय, कोल्हापुर (महाराष्ट्र) के प्रभारी प्रधानाचार्य एवं हिन्दी- विभागाध्यक्ष डॉ० प्रकाश चिकुर्डेकर ने कहा– रामराज मे सबका मंगल होता था। एकता-अखण्डता, उत्कृष्ट आदर्श धर्मपालन, कर्त्तव्यपरायणता, समभाव स्वतन्त्रता को प्राथमिकता दी गयी थी; परन्तु प्रश्न है, आज जिस वातावरण मे देश के नागरिक अपनी जीवन-शैली जी रहे हैं, क्या उसमे ये सब बातें दिखती हैं? रामराज की यदि संकल्पना करनी हो तो व्यक्ति क्षुद्र स्वार्थ और गर्हित अहम्मन्यता से ऊपर उठना होगा। शासनतन्त्र के माध्यम से भय, निरंकुशता, वैमनस्य आदिक कुप्रवृत्तियों का समूल नाश करना होगा, तब कहीं जाकर हम रामराज की प्रासंगिकता पर विचार करने की स्थिति मे आ सकते हैं।

विशिष्ट अतिथि के रूप मे हरदोई के अध्यापक आदित्य त्रिपाठी ने कहा– रामराज ही किसी समाज के विकास का उच्चतम विन्दु है। ऐसे मे, जब भाई ‘भाई’ का गला काट रहा है; पुत्र वृद्ध और अशक्त माता-पिता को बोझ समझकर घर से निकाल रहे हैं; राजा के लिए प्रजा मात्र हित-साधन का निमित्त बनकर रह गयी है; ऐसे मे, रामराज की महती प्रासंगिकता है। आवश्यकता इस बात है कि रामराज हमारी बातों मे नहीं, बल्कि हमारे विचारों और कर्मो मे भी दृष्टिगत हो। यह विचारणीय विषय है और प्रश्न भी– क्या राम की प्राणप्रतिष्ठा कर देने से हमारे भीतर ‘रामत्व’ का प्रतिष्ठापन हो जाता है?

आयोजक, भाषाविज्ञानी एवं मीडियाध्ययन-विशेषज्ञ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने देश मे परिव्याप्त अभाव का ख़ाका खींचते हुए बताया– आज देश के प्रत्येक नागरिक पर १ लाख ४० हज़ार रुपये से अधिक का ऋण है। आज ६० करोड़ से अधिक भारतीय ग़रीबी मे जी रहे हैं। २२ करोड़ से अधिक भारतीय कुपोषण के शिकार हैं। हत्या, अपहरण, लूटपाट, चोरी आदिक अपराध चरम पर है। देश का नागरिक महँगाई, बेरोज़गारी, रिश्वतख़ोरी, सामाजिक, राजनैतिक कटुता तथा आर्थिक विसंगति से बुरी तरह से जूझ रहा है। ऐसे मे, रामराज की कल्पना कैसे साकार होगी, शोचनीय प्रश्न है। आज देश मे एक सोची-समझी नीति के अन्तर्गत जिस तरह से राम को प्रचारित-प्रसारित किया जा रहा है, उसके पीछे कौन-सी नीति और नीयत काम कर रही है, इस ओर विचार करने के लिए किसी के पास अवकाश तक नहीं है।

हमारे स्वस्थ जीवन-यापन करने के लिए हमे सुस्वास्थ्य, सुशिक्षा, सुसेवा तथा सुवेतन की आवश्यकता है? यदि हाँ तो हमारी प्राथमिकताएँ कहाँ गयीं? आज भारत मे प्रतिदिन २२ करोड़ से अधिक लोग भूखे रह जाते हैं; ऐसे मे, प्रश्न है– हमे राजनैतिक राम चाहिए वा रोटी?

लेखक एवं पत्रकार डॉ० राघवेन्द्र कुमार त्रिपाठी ‘राघव’, हरदोई का कहना था– रामराज की प्रासंगिकता सदैव रही है और रहेगी। अयोध्याधाम मे आयोजित हो रहे प्राणप्रतिष्ठा-कार्यक्रम मे करोड़ों हिन्दुओं की भावना जुड़ी हुई है। यहाँ विचारणीय यह है– स्थापना रामविग्रह की हो रही है वा कोई व्यक्ति स्वयं को धर्म का ठीकेदार सिद्ध कर रहा है? निर्माणाधीन घर मे जनसामान्य रहने से कतराता है, फिर अपूर्ण मन्दिर मे विग्रह के रूप मे राम के अन्तरात्मा को कैसे प्रतिष्ठित किया जा सकता है? जिस रामलला के लिए भीषण संघर्ष हुआ; रक्तपात हुआ, उसके स्थान पर नवीन मूर्ति अनेक प्रश्नो को जन्म देती है। देश के धर्मध्वजधारी हाशिये पर बैठा दिये गये हैं तथा नचनिये-गवनिये, विदूषक एवं धर्म के मर्म से च्युत लोग प्राणप्रतिष्ठा-समारोह मे अतिथि बनाये जा रहे हैं।

रायबरेली की साहित्यकार आरती जायसवाल ने कहा– यदि केन्द्र-राज्य-सरकारें तथा जनसामान्य रामराज की परिकल्पना कर लें तथा अपना आचार-विचार शुद्ध रखें; दूषित मनोवृत्ति का त्यागकर सद्वृत्ति को प्राथमिकता दें तो कहीं जाकर देश मे परिव्याप्त विषमता दूर हो सकेगी, फिर कहीं जाकर रामराज-स्थापना के विषय मे सोचा जा सकता है।