शाबाश चानू! टोक्यो-ओलिम्पिक-खेल में भारत को ‘रजतपदक’

★ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

आज (२४ जुलाई) का दिन भारत के गर्व का रहा। ‘भारोत्तोलन-प्रतियोगिता’ के ४९ किलोग्राम-भारवर्ग की स्पर्द्धा में मीराबाई चानू ने दूसरा स्थान अर्जित कर भारत को वैश्विक मंच पर जो प्रतिष्ठा दिलायी है, वह ऐतिहासिक है। उल्लेखनीय है कि वर्ष २००० के ‘सिडनी-ओलिम्पिक’ में कर्णम मल्लेश्वरी ने भारोत्तोलन-प्रतियोगिता में ही ‘काँस्यपदक’ जीता था।

इम्फाल (मणिपुर) की रहनेवाली २६ वर्षीया भारतीय भारोत्तोलिका मीराबाई चानू के लिए स्वर्णपदक जीतने का अच्छा अवसर था; परन्तु अपने दूसरे प्रयास में चानू ने ‘स्नैच’ में ८७ किलोग्राम तथा दूसरे प्रयास में ही ‘क्लीन’ और ‘जर्क’ में ११५ किलोग्राम का भार/वज़्न (‘वजन’/’वज़न’ अशुद्ध है।) उठाया था। इस स्पर्द्धा में चानू ने कुल २०२ किलोग्राम भार उठाये थे। उनका मुक़ाबिला चीन की भोरोत्तोलिका होऊ झिऊई से था। होऊ ने कुल २१० किलोग्राम भार (‘स्नैच’ में ९४; ‘क्लीन’ और ‘जर्क’ में ११६ किलोग्राम) उठकर अन्तत:, स्वर्णपदक जीत लिया था। इण्डोनेशिया की भारोत्तोलिका ऐसाह विण्डी काण्टिका ने १९४ किलोग्राम का भार उठाकर काँस्यपदक जीता था।

इस प्रकार भारत ने अपनी विजयश्री-गाथा ‘रजतपदक’ जीतकर ‘ओलिम्पिक-पट्ट’ पर अंकित कर दिया है। इक्कीस वर्षों-बाद भारत को भारोत्तोलन-प्रतियोगिता में यह पदक मिला है। चानू के उल्लेखनीय है कि वह अपने देश के लिए भारोत्तोलन-प्रतियोगिता में ‘रजतपदक’ जीतनेवाली ‘पहली खिलाड़ी’ (महिला-पुरुष में) बन चुकी हैं।

पदक जीतने के बाद यशस्विनी खिलाड़ी मीराबाई चानू ने कहा, “मैं पदक पाकर बहुत ख़ुश हूँ। मुझे पाँच वर्षों से इसी दिन का इन्तिज़ार था। मैंने ‘गोल्ड’ जीतने के लिए पूरी कोशिश की थी।”
ज्ञातव्य है कि मीराबाई चानू का परिवार अत्यन्त अभावों में जी रहा था। चानू इम्फाल के ‘नोंगपेक काकचिंग’ गाँव की हैं। वे बचपन में भोजन पकाने के लिए और जलावन के लिए पहाड़ पर जाकर लकड़ियाँ बीनती थीं, तब जाकर भोजन मयस्सर होता था। ऐसी युवाशक्ति और उसके परिवार का आज वैश्विक मंच पर मस्तक उन्नत है। हम अभिवादन करते हैं।

हमारा ‘मुक्त मीडिया’ मीराबाई चानू की उपलब्धि पर गर्व करता है और उन्हें बधाई सम्प्रेषित करता है।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २४ जुलाई, २०२१ ईसवी।)