
विज्ञान-प्रौद्योगिकी एवं प्राविधिक शिक्षण-प्रशिक्षण हिन्दी-माध्यम मे अनिवार्यत: कराये जायेँ– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
‘हिन्दी साहित्य सम्मेलन’ एवं ‘सरदार पटेल विश्वविद्यालय’, आणन्द (गुजरात) के संयुक्त तत्त्वावधान मे आयोजित त्रिदिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन के अन्तर्गत गत दिवस एक बृहद् राष्ट्रीय बौद्धिक परिसंवाद-कार्यक्रम किया गया था, जिसमे विज्ञान-प्रौद्योगिकी एवं प्रविधि, साहित्य, समाज तथा भाषा के क्षेत्रोँ से सम्बन्धित विविध विषय थे।
‘विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्रोँ मे हिन्दी की सत्ता और महत्ता’ विषय पर मुख्य वक्ता के रूप मे प्रयागराज से पधारे भाषाविज्ञानी आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने बताया, “आज ‘ई० लर्निँग’, ‘ई० शिक्षा’ को लागू करते समय विज्ञान- प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य-उपचार-औषध, कृषि-तकनीकि, कम्प्यूटर-हार्डवेअर-सॉफ़्टवेअर तथा उपर्युक्त समस्त विषयोँ-उपविषयोँ आदिक को पढ़ाते समय अँगरेज़ी-माध्यम का ही आश्रय लिया जा रहा है। उन विषयोँ की तकनीकी शब्दावली और पारिभाषिकी इतनी जटिल रहती हैँ कि उनकी अर्थ-अवधारणा तथा सन्दर्भ की पकड़ और परख कर पाना उतना सरल-सहज नहीँ होता, जितना कि समझा जाता है।”
आचार्य ने आगे कहा, “अँगरेज़ी-माध्यम मे अध्ययन करते आ रहे मेधावी विद्यार्थी तो समझ लेते हैँ; किन्तु हिन्दी-माध्यम मे अध्ययन कर रहे विद्यार्थियोँ को कष्ट और कठिनाई का सामना करना पड़ता है, जबकि सर्वाधिक संख्या हिन्दी-माध्यम मे अध्ययन कर रहे विद्यार्थियोँ की ही होती है। ऐसे मे, विद्यार्थियोँ को विधिवत् रूप से ज्ञान कराने के लिए हिन्दी-माध्यम मे शिक्षा-प्रशिक्षा की ठोस सैद्धान्तिक-प्रायोगिक व्यवस्था करनी होगी; हिन्दीभाषा मे विद्यार्थियोँ और अध्यापकोँ के लिए उपयोगी पुस्तक-लेखन की अनिवार्यता पर बल देना होगा। इससे हिन्दीलेखन की दिशा मे एक शैक्षिक क्रान्ति आ सकती है, जिसकी आज परम आवश्यकता है।”
हिन्दी-परिनियमावली की प्रासंगिकता-विषय पर माधवराव सप्रे संग्रहालय, भोपाल के संस्थापक-निदेशक डॉ० विजयदत्त श्रीधर ने कहा, “जब हिदी की संशोधित परिनियमावली बनायी जाये तब उसमे किन्तु-परन्तु न रहे। हमारी योजना है कि हम भाषाई सौहार्द बनायेँ। परिनियमावली मे क्या-क्या अनुकूल है और क्या-क्या प्रतिकूल, इन पर विचार करना होगा।”
‘साहित्य-समीक्षा के क्षेत्र मे प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग’ विषय पर डॉ० संगीता चौहान ने कहा, “विश्व के ९० प्रतिशत लोग के पास मोबाइल फ़ोन है, जो सबसे बढ़कर प्रौद्योगिकी है, जिसके माध्यम से हम साहित्य के विविध पक्षोँ पर सामग्री प्राप्त कर सकते है। इसके अतिरिक्त ‘ऑनलाइन माध्यम से विषयवस्तु ग्रहण कर सकते हैँ।’
डॉ० पंकजमोहन सहाय ने कहा, “जो जीवन की संवेदना है, उसे हम यन्त्र मानव के माध्यम से ग्रहण नहीँ कर सकते; क्योँकि वह प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग से ऐसा उत्कर्ष प्राप्त कर सकता, जिसकी आज ज़रूरत है।”
प्रो० कल्पना गवली ने ऑनलाइन साहित्य-समीक्षा पर बल दिया। उन्होँने ब्लॉग, गूगल आदिक की उपयोगिता समझायी।
‘वरिष्ठ नागरिक विमर्श’ विषय पर डॉ० प्रभात ओझा ने कहा,”वृद्धजन की बातेँ भी सुननी चाहिए; क्योँकि उनकी बातोँ मे उनके जीवन का अनुभव बोलता है। उसके अनुभव से जीवन का सार ग्रहण करना चाहिए।”
चन्द्रप्रकाश पाण्डेय ने कहा, “वरिष्ठ नागरिकोँ को पचास-इक्यावन वर्ष की अवस्था प्राप्त करते ही वन के लिए निकल आना चाहिए, अन्यथा वे अपना मान-सम्मान खो देँगे।”
राकेश शर्मा ने कहा, “वृद्धजन को परिवार और समाज की ओर से समय दिया जाना चाहिए। उनकी भावना का समादर करना चाहिए। क़ानून-नियम बनाये जाते हैँ, उनमे वृद्धोँ के लिए तो हैँ; परन्तु वृद्धोँ को क्या करना चाहिए, यह नहीँ बताया जाता।”
इसी अवसर पर विश्वविद्यालय की ओर से सरदार वल्लभभाई पटेल की १५०वेँ जन्मदिनांक के अवसर पर एक बौद्धिक आयोजन किया गया, जिसमे कुलपति प्रो० निरंजनभाई पटेल, प्रो० डी० रवीन्द्रकुमार, प्रो० सूर्यप्रसाद दीक्षित, प्रो० राजेन्द्र मिश्र, हर्षित मेहता, चक्रवर्ती पटेल तथा कुन्तक मिश्र की सहभागिता रही। डॉ० दिलीप मेहरा ने कृतज्ञता-ज्ञापन की।
इस समूचे आयोजन मे कृष्णकुमार पाण्डेय (प्रयागराज), विभा जायसवाल, कुलदीप कुमार, मोहन, पंकजलोचन, डॉ० वसंत पटेल, विमल चौधरी, (गुजरात), विभूति मिश्र, नरेन्द्रदेव पाण्डेय, श्यामकृष्ण पाण्डेय, स्नेहलता मिश्र, डॉ० किरणबाला पाण्डेय, किण्ठमणि प्रसाद मिश्र, दुर्गानन्द शर्मा, डी० के० सिँह, पवित्र तिवारी (प्रयागराज), शचीन्द्र मिश्र (वाराणसी), डॉ० मंगला अनुज (भोपाल), अक्षयकुमार बाघ, जयकिशोर साहू, वीरेन्द्र विजय साहू (ओड़िशा), ख़ुशीराम शर्मा (आगरा) इत्यादिक देश के कई राज्योँ से आये हिन्दीसेवियोँ की सहभागिता रही।