बालसाहित्य पर संकट नहीं है, अध्ययन पर संकट है– डॉ० सुरेन्द्रकुमार पाण्डेय

‘सर्जनपीठ’ की ओर से सारस्वत सभागार, लूकरगंज, प्रयागराज मे ‘बालरसरंग : बड़ों के संग’ के अन्तर्गत ‘बालसाहित्य का होता ह्रास’ विषय पर १३ नवम्बर को एक परिसंवाद का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि पूर्व-ज़िलाधिकारी और साहित्यकार डॉ० सुरेन्द्रकुमार पाण्डेय ने कहा, “बालसाहित्य के सर्जन पर संकट नहीं है, उसके अध्ययन पर संकट है। किसी तरह बच्चों, बूढ़ों, जवानो मे पढ़ने के प्रति जागरूक करना होगा।”

अध्यक्षीय अभिभाषण करते हुए पूर्व-प्राचार्य हेमवतीनन्दन बहुगुणा डिग्री कॉलेज, नैनी डॉ० विभुराम मिश्र ने कहा, “बालसाहित्य के बहाने छात्र की बात हो रही है, तो उसका नैतिक और चारित्रिक उत्थान होना चाहिए। इसका दायित्वनिर्वहण साहित्यकारों को करना होगा।”

इससे पूर्व दीप-प्रज्वलन और सरस्वती का माल्यार्पण कर समारोह का शुभारम्भ किया गया। डॉ० प्रदीप चित्रांशी ने अतिथियों का स्वागत किया।

विशिष्ट अतिथि लखनऊ से आये प्रमोदानन्द ने कहा, “बालक से दूर रहकर हम बालसाहित्य की कल्पना नहीं कर सकते।”

आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने कहा, “बाल-साहित्य को लिखने से पहले बालमन का कोना-कोना गम्भीरतापूर्वक छानना होगा और बाल-मनोविज्ञान को समझना होगा।”

ए० आर० पी०, बाराबंकी लक्ष्मीराज ने बताया, “बहुत कुछ किया जा रहा है और करने की आवश्यकता है। बालसाहित्य का अनुशासित प्रयोग बहुत ज़रूरी है। इस आयोजन को अभियान का रूप देना होगा।”

डॉ० मुदिता तिवारी ने कहा, “ऐसा नहीं है कि पुस्तकें नहीं लिखी जा रही हैं और न ही अनुपलब्ध हैं, वे बच्चों तक पहुँच नहीं रही हैं।”

ए० आर० पी०, बाराबंकी पवन कुमार ने कहा, “बाल-धरातल को समझते हुए बालसाहित्य-रचना करने की आवश्यकता है।”

डॉ० धारवेन्द्रप्रताप त्रिपाठी ने कहा, “बच्चे की ज़रूरत और उसे जानना ज़रूरी है।”

उर्वशी उपाध्याय ने कहा, “साहित्य लिखा जा रहा है; परन्तु बच्चों तक नहीं पहुँच रहा है।”

डॉ० ज्योतीश्वर मिश्र ने कहा, “आप साहित्यकार से कहकर लिखवा नहीं सकते। बालसाहित्यकार को समाज के प्रति अपना उत्तरदायित्व समझना होगा।”

इनके अतिरिक्त अमरनाथ झा, दशरथ लाल, डॉ० शशि कुमारी, चन्दन प्रसाद, दुर्गानन्द शर्मा, केशव सक्सेना, डॉ० पूर्णिमा मालवीय, स्वतन्त्रकुमार पाण्डेय ने अपने विचार व्यक्त किये थे।

सभी वक्ता-वक्त्रीवृन्द को आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय-द्वारा सम्पादित कृति ‘स्वातन्त्र्य-समर मे इलाहाबाद का शंखनाद’ भेंट की गयी।

संयोजक रणविजय निषाद ने संयोजन किया। आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने संचालन किया। डॉ० रवि मिश्र ने कृतज्ञता-ज्ञापन किया।