आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय की पाठशाला

★उत्तरप्रदेश-विधानसभा समूह ‘ख’ की परीक्षा पर प्रश्नचिह्न
★’हिन्दी-भाषा’ के प्रश्नपत्र तैयार करनेवालों की अयोग्यता सामने आयी

विद्यार्थी किसी भी परीक्षा में इसलिए सम्मिलित होते हैं कि उनका परिश्रम सार्थक हो और वे परीक्षा की कसौटी पर खरे उतरें; किन्तु प्रश्नपत्र तैयार करनेवाले (प्राश्निक) ही अपने कर्त्तव्य का निर्वहण न कर पायें या फिर अपनी अपरिपक्वता और अयोग्यता का प्रदर्शन करें तो यह आपराधिक और शोचनीय विषय बन जाता है। इसका जीता-जागता उदाहरण है, उत्तरप्रदेश-विधानसभा के ‘समूह ख’ की परीक्षा के ‘हिन्दी-भाषा’-प्रश्नपत्र, जिसमें प्रश्नात्मक वाक्य और उत्तर के रूप में दिये गये पाँच विकल्प अशुद्ध और अनुपयुक्त हैं। जब किसी विकल्प में अनेक उपयुक्त उत्तर दिख रहे हों तब उनमें से परीक्षार्थी किसी चुने और किसे छोड़े, यह उसके लिए चुनौती बन जाती है। वह परीक्षा पिछले २४ जनवरी को करायी गयी थी।

प्रश्नपत्र के ‘पार्ट- बी’ के अन्तर्गत प्रश्न ५६ को देखें, “निम्नलिखित में से कौन सा शब्द ‘खल’ का विलोम होगा–” यह प्रश्नात्मक वाक्य है, इसलिए इस प्रश्न के अन्त में प्रश्नबोधक चिह्न (?) लगेगा और ‘कौन सा’ के स्थान पर ‘कौन-सा’ होगा, जबकि ‘निर्देशक-चिह्न’ (-) लगाकर ग़लत संदेश दिया गया है। प्रश्न ७३ में ‘विशेषण’ की दृष्टि से अशुद्ध वाक्य पूछा गया था, जबकि दिये गये विकल्पों में से दो विकल्प उपयुक्त उत्तर हैं। (बी) में बुरे लोगों के स्थान पर ‘बुरे लोग’ और (डी) में अधिकांश लोगों की जगह ‘अधिकतर लोग’ होगा। प्रश्न ९० में अनुचित विलोम-युग्म पूछा गया है। उसमें एक सही युग्म के रूप में ‘तामसिक-सात्विक’ दिया गया है, जबकि ‘सात्विक’ कोई सार्थक शब्द है ही नहीं, शुद्ध शब्द ‘सात्त्विक’ है। ऐसे में, इस प्रश्न के सभी विकल्प अनुपयुक्त हैं। प्रश्न ९१ में ‘जो व्यक्ति विदेश में रहता हो’, इसके लिए सही शब्द पूछा गया थे, जिसके उत्तर के रूप में दिये गये सभी विकल्प अशुद्ध और अनुपयुक्त थे। वे विकल्प थे :– (ए) अनिवार्य (बी) अशक्य (सी) अप्रवासी (डी) अंतेवासी, जबकि इसका शुद्ध उत्तर ‘आप्रवासी’ होगा, जो कि दिया ही नहीं गया है। प्रश्न ९८ में अशुद्ध वाक्य पूछा गया है, जबकि उसमें दो विकल्पों (ए) और (सी) के वाक्य अशुद्ध हैं। (ए) में पिताजी है, जबकि ‘पिता जी’ होगा। ‘जी’ आदरसूचक शब्द है, जो कि अलग से लगता है, जैसे ‘श्री’ शब्द का अलग से प्रयोग होता है। (सी) में मीरां और कवि की जगह क्रमश: ‘मीराँ’ और ‘कवयित्री’ होगा। प्रश्न १०० में ‘आदि से अन्त तक’ के लिए उपयुक्त शब्द पूछा गया है, जबकि उसके विकल्प के सभी उत्तर अशुद्ध और अनुपयुक्त हैं। उसका उत्तर ‘आद्यन्त’ होगा, जबकि विकल्प में दिया ही नहीं गया है। एक विकल्प ‘आद्योपान्त’ यह समझकर दिया गया है कि वही उसका सही अर्थ है, जबकि आद्योपान्त का अर्थ ‘आदि से अन्त के समीप तक’ होता है; अर्थात् ‘अन्तिम से ठीक पहले’।

हम बार-बार देश की लगभग समस्त प्रतियोगितात्मक परीक्षाओं के ‘हिन्दीभाषा’/’सामान्य हिन्दी’ के प्रश्नपत्रों में बड़ी संख्या में प्रयोग किये गये जा रहे अशुद्ध और अनुपयुक्त शब्दों, विरामचिह्नों आदिक के कारण स्पष्ट दिख रहे ग़लत उत्तरों के प्रति सजग करते आ रहे हैं; किन्तु प्रश्न बनाने के लिए चयन किये गये आधिकारिक व्यक्ति की योग्यता ही सन्दिग्ध दिखती आ रही है। इसके लिए वे अधिकारी उत्तरदायी हैं, जो प्रश्नपत्र बनाने के लिए अपरिपक्व लोग का चयन करते हैं। इससे हमारे विद्यार्थियों को अनावश्यक रूप से ‘न्यायालयों’ के चक्कर लगाने पड़ते हैं। क्या उत्तरप्रदेश के मुख्यमन्त्री इसका संज्ञान करना चाहेंगे?

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २९ जनवरी, २०२१ ईसवी।)