चेतावनी के स्वर

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय


राख में सुगबुगाहट है, जगाओ मत,
ख़ाक हो जाओगे, पास आओ मत।
मेरे मौन को ‘मौन’ मत समझ लेना,
कितने ‘गिरे’ हो, ज़बाँ खुलवाओ मत।
तुम्हारे सलीक़े की गणित हमने पढ़ ली है,
नंगी बेशर्मी से पेश तुम अब आओ मत।
तुम कितने पानी में हो, यह अन्दाज़ा था,
क़ज़ा से पहले अपनी क़ब्र खुदवाओ मत।
पाला बहुतों से पड़ा होगा पर यह ‘निराला’ है,
पछताओगे बहुत, मुझे तुम आज़्माओ मत।
चिंगारी को ‘चिंगारी’ तक ही रहने दो, बेशक,
बनाकर शोले उसे तुम उसे भड़काओ मत।
(सर्वाधिकार सुरक्षित : डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ; २८ दिसम्बर, २०१७ ईसवी)