असत्य क्या है?

असत्य क्या है?
प्लीज विस्तार से बताने की कृपा करें…!

जो बातें यथार्थ नहीं, काल्पनिक हैं, वे असत्य हैं।

जिन बातों में शाश्वतता, सनातनता, स्थिरता नहीं वे असत्य हैं।

जो दृष्टि एक को दूसरे से भिन्न देखती है उनके बीच आत्मिक अभिन्नता को नहीं देख पाती, वह दृष्टि असत्य होती है।

खंडबोध ही असत्य का बोध कहलाता है।

खंड खंड में अखंड का न दिखाई देना ही असत्य का दर्शन है।

जिस बुद्धि से परस्पर दुराव का बोध है, उसे असत्य कहते हैं।

जिस ह्रदय से परस्पर शत्रुता की अनुभूति होती है उसे असत्य कहते हैं।

जिस ज्ञान से मैं और तू के बीच द्वैत की दृष्टि का जन्म होता है उसे असत्य कहते है।

जिस दर्शन से आत्मिक अद्वैत के स्थान पर लोगों के बीच द्वैत दिखाई देता है उसे असत्य कहते हैं।

जिस मान्यता से आत्मा का अस्तित्व संकीर्ण अनुभव होता है उसकी सर्वव्यापकता अनुभव नहीं होती उसे असत्य कहते हैं।

जिस ज्ञान से आदत का वर्चस्व और शासन आत्मा पर स्थापित हो जाता है उसे असत्य कहते हैं।

जिस आसक्ति से विवेक किन्ही वृत्तियों के अधीन हो जाता है उसे असत्य कहते हैं।

जिस कल्पना से जातिभेद, लिंगभेद, रंगभेद, क्षेत्रभेद, भाषाभेद, राष्ट्रभेद के कारण परस्पर द्वन्द्व और संघर्ष उत्पन्न होता है उसे असत्य कहते हैं।

जिस नयन से निष्पक्ष न्याय नहीं उत्पन्न होता उसे असत्य कहते हैं।

जिस नेत्र से न्यायशील नेतृत्व नहीं उत्पन्न होता उसे असत्य कहते हैं।

जिस कर्म से स्वहित की सिद्धि और परहित की क्षति होती है उसे असत्य कहते हैं।

जिस मन से ‘स्व’ के साथ ‘पर’ के सम्बन्ध की मूल्यवत्ता का परिचय नहीं होता उसे असत्य कहते हैं।

जो कुछ भी सत्य नहीं है, वह सब असत्य ही है।

सत्य के बिना शक्ति केवल विनाशकारी होती है।
मूर्ख शक्तिमान ही धरती के लिए घातक सिद्ध होते रहे हैं।

पूरी दुनिया ने अब तक केवल शक्ति की ही खोज किया है।
सत्य की खोज अब तक नहीं हुई जिसका फल है कि 95% लोग दुख भोग रहे हैं।

आध्यात्मिक शक्तियों की तलाश में संसार दर-दर भटकता रहा….
सत्य को उपेक्षित करके।

जप तप साधना योग ध्यान
सब कुछ कर डाला शक्ति के पुजारियों ने तहस-नहस कर डाला पूरी दुनिया को।
ध्यान से शक्ति मिलती है।
ज्ञान से सत्य मिलता है।

दुनिया को वास्तव में सत्य के दार्शनिक ज्ञान की आवश्यकता है।

रावणों को केवल शक्ति प्रिय होती है सत्य नहीं।
सत्य से तो वे लोग नफ़रत करते हैं।
क्योकि सत्य सर्वात्मक होता है।

अतः सत्य उनके दम्भ को चुनौती देती है।
उनके एकाधिकार को ललकारता है।
अतः वे सत्य से दूर भागते हैं।

सत्य कहता है दूसरों को भी स्वीकार करो।
किन्तु दंभी तो दूसरों से नफ़रत करता है। इसीलिए ध्यान की ओर चल पड़ता है दंभी।

जो जिससे नफ़रत करता है वह उससे डरता भी है।
और इस डर से प्रेरित होकर वह अपनी शक्ति बढ़ाने का प्रयास करता है।

शक्ति का पुजारी बन जाता है।

अतः अब सतयुग लाना है।
शक्ति का युग अब नहीं चाहिए।

शक्तिमानों ने अब तक केवल युद्ध किये हैं संहार किया है।

अब तो सत्य को ही जितवाना है।
तभी सतयुग आएगा।
सत्य को अब हारने नहीं देना है।

जान रहे या जाए लेकिन सत्य रहना चाहिए।

क्योंकि सत्य सर्वहितकारी है

हमारे प्राण से भी अधिक मूल्यवान है सत्य।

बोलिये….
सत्यम् शरणम् गच्छामि…!!!
सत्यम् शरणम् गच्छामि…!!!
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-(राम गुप्ता – स्वतंत्र पत्रकार – नोएडा)