जीवन क्या है ? एक बहती हुई नदी

राघवेन्द्र कुमार त्रिपाठी ‘राघव’

राघवेन्द्र कुमार “राघव” प्रधान संपादक, इण्डियन वॉयस 24

जीवन क्या है ?
एक बहती हुई नदी है ।
कंकरीले और पथरीले रास्तों
पर बहती हुई,
सर्दी और गर्मी सहती हुई।
जैसे नदी चलना नहीं छोड़ती है 
ऐसे ही ये जिन्दगी है ।
अनेक रूकावटें और अनेक दुश्वारियां ।
तरह-तरह के दुःख और अनेक परेशानियाँ ।

लेकिन जो भी राह में मिलता है
उसके साथ हो लेती है ।
अकेले कोई मिल गया तो
उसे साथ ले लेती है ।
कभी रुकती है और कभी चलती है ।
कहीं भी देर तक नहीं ठहरती है ।

अपनी धुन में नाचती और गाती
किनारों को कल-कल और छम-छम के संगीत सुनाती ।
प्रियतम के आगोश में समा जाती है ।
यही है जिन्दगी की कहानी
कभी हँसाती है और कभी रुला जाती है ।