हिन्दी साहित्य सम्मेलन का सत्तरवाँ अधिवेशन सम्पन्न

  •  मानकीकरण के नाम पर हिन्दी-भाषा के साथ विश्वासघात : डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

“विगत सौ वर्षों की हिन्दीभाषा के मानकीकरण के इतिहास पर दृष्टिपात करने से यह सुस्पष्ट हो जाता है कि अब तक जिन-जिन हिन्दी प्रचारक-संस्थानों ने हिन्दी के मानकीकरण की दिशा में कार्य किये हैं, वे सतही बनकर रह गये हैं, वह चाहे नागरी प्रचारिणी सभा रही हो; अखिल भारतीय प्रकाशक संघ रहा हो; मानव संसाधन विकास मन्त्रालय, शिक्षा-मन्त्रालय रहा हो, चाहे केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय, तकनीकी शब्दावली आयोग आदिक रहे हों, उनकी समिति में सम्मिलित सदस्यों में मानकीकरण के स्तर पर विशद मतभेद देखा गया है। यही कारण है कि आज तक हिन्दीभाषा के शब्द-लेखन और वाचन-स्तर पर शब्दप्रयोग में एकरूपता नहीं दिख रही है, जो हिन्दीभाषा के मानकीकरण के नाम पर विश्वासघात है।”

उक्त उद्गार ‘हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग’ की ओर से तिरुपति (आन्ध्रप्रदेश) में ‘महथी कला-श्रोतृशाला’ में आयोजित त्रिदिवसीय (८-९-१० मार्च, २०१८ ई०) सत्तरवें अधिवेशन में ‘सौ वर्षों में किये गये राष्ट्रभाषा के मानकीकरण का औचित्य’ पर ‘विशिष्ट वक्ता’ के रूप में व्याख्यान करते हुए इलाहाबाद से पधारे भाषाविद् डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने व्यक्त किये थे।

डॉ० पाण्डेय ने कहा, “अब देश के प्रमुख भाषाविशेषज्ञों को सारी अहम्मन्यता को त्याग कर नागरी लिपि की शुचिता को बनाये रखते हुए, भाषा के मानकीकरण अथवा प्रतिमानकीकरण के प्रति जागरूक होना पड़ेगा।”
अध्यक्षता करते हुए डॉ० सूर्य प्रसाद दीक्षित ने कहा, “हिन्दी- भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए हम सभी को आगे आना होगा। भारतीय भाषाओं को हिन्दी के साथ जोड़ते हुए, उसे बहुत विस्तार देने की ज़रूरत है। इससे पारस्परिक भाषिक सामर्थ्य जाग्रत होगी।”

इस त्रिदिवसीय अधिवेशन का उद्घाटन उत्तराखण्ड के पूर्व-मुख्यमन्त्री डॉ० रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ के सभापतित्व में हुआ, जिसमें देश के सुदूर अंचलों से विद्वान्, विदुषी तथा हिन्दीभाषा-अनुरागी उपस्थित थे। श्री स्वामी हाथीराम जी मठ, तिरुपति के पण्डित महन्तवारु ने अभ्यागतगण का स्वागत किया था।

‘हिन्दी-साहित्य के विकास में दाक्षिणात्य साहित्यकारों की भूमिका’, ‘राष्ट्रभाषा के सौ वर्ष’ तथा ‘आस्था बनाम अन्धविश्वास का समाजशास्त्र’ विषयों पर इलाहाबाद और अन्य स्थानों के वक्तागण ने विचार प्रस्तुत किया। इस अवसर पर हिन्दी और दाक्षिणात्य साहित्यकारों के मध्य भाषिक सौहार्द उत्पन्न करने के उद्देश्य से सम्मेलन की ओर से चार प्रस्ताव पारित किये गये।

हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग की शीर्षस्थ मानद उपाधि ‘साहित्यवाचस्पति’ से डॉ० एस० शेषारत्नम्, धनपाल राज हीरामन तथा डॉ० ए० अरविन्दाक्षन को आभूषित किया गया।

हिन्दी साहित्य सम्मेलन के प्रधान मन्त्री विभूति मिश्र ने अभ्यागतगण के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की। श्यामकृष्ण पाण्डेय ने संचालन किया था। अगले अधिवेशन का आयोजनस्थान ‘विशाखापट्टनम्’ (आन्ध्रप्रदेश) प्रस्तावित है।