एक अभिव्यक्ति

● आचार्य ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

एक–
वह वादाशिकन है, पलकों पे बिठाना मत,
गर नज़रों में समायी तो पछतायेगी ज़िन्दगी।
दो–
ज़िन्दगी भीख में मिला नहीं करती प्यारे!
मौत के जबड़े से छुड़ा लेने की क़ुव्वत रख!
तीन–
ठिठक जाओगे तो दूर तक पछताओगे,
बलन्द हौसले को मंज़िल सलाम करती है।
चार–
तुझे रौशनी प्यारी है तो चल, दूर हट!
मेरे हिस्से के अँधेरे पे नज़र न लगा।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १६ जून, २०२२ ईसवी।)