अन्दाज़ा लगाइए- आर्यनगर, प्रखण्ड, गोंडा (उत्तरप्रदेश) का ‘बी०डी०ओ०’ कितना पढ़ा-लिखा हो सकता है?

अब आप दिये गये चित्र को एकटक देखिए। यह आर्यनगर, प्रखण्ड, गोंडा (उत्तरप्रदेश) का ‘बी० डी० ओ०-कार्यालय’ है। दायीं ओर, इस कार्यालय के एक आंशिक कक्ष को देखिए– दरवाज़ा का एक पल्ला दिख रहा है। ऐसा लग रहा है, मानो यह पल्ला बाहर आकर दोनों हाथों में प्रमाण लेकर यहाँ के बी० डी० ओ० साहिब की इज़्ज़त विधि-विधान के साथ उतार रहा हो।

अब आप घुटन के कारण बाहर की ओर भाग रहे दरवाज़े के इस पल्ले पर ग़ौर कीजिए। बेचारे की छाती पर मोटे-मोटे अक्षरों में छ: पंक्तियों में कुछ टंकित कर चिपका दिया गया है। कुल टंकित शब्दों के योग से मात्र एक वाक्य की रचना होती है। अब आप इस वाक्य-विन्यास और शब्दप्रयोग पर विचार कीजिए।

निश्चित रूप से आपको अपनी आँखों की मालिश करानी पड़ेगी।

आश्चर्य है कि एक सम्मानित पद धारण करनेवाला ‘बी० डी० ओ०’ कितना अज्ञानी और लापरवाह है, जिसे न तो स्वर की समझ है न ही व्यंजन की। केवल एक वाक्य लिखना था, वह भी बी० डी० ओ० साहिब नहीं लिख/लिखवा सके।
तो क्या इनके भी शैक्षिक प्रपत्रों के परीक्षण करने की आवश्यकता है?

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १० जून, २०२० ईसवी)