‘सर्जनपीठ’ के तत्त्वावधान मे राष्ट्रीय ‘शिक्षा-दिवस’ की पूर्व-संध्या मे ४ सितम्बर को ‘शिक्षा बाज़ार से कैसे मुक्त हो?’ विषय पर अलोपीबाग़, प्रयागराज से एक राष्ट्रीय आन्तर्जालिक बौद्धिक परिसंवाद का आयोजन किया गया।
आयोजन की अध्यक्षता करते हुए, हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग के संरक्षक विभूति मिश्र ने बताया, “आज शिक्षा पर गहरा संकट है। जिधर देखो, उधर गुणवत्ता से रहित महँगे स्कूल। इस दिशा मे केन्द्र और राज्य की सरकारोँ को मिल-बैठकर ऐसा कोई उपाय निकालना होगा, जिससे शिक्षा का व्यावसायीकरण रुके और आम विद्यार्थी के लिए शिक्षा सुलभ हो।”
पुणे से श्री देशना’ की सम्पादिका ममता जैन ने कहा, ”यदि गम्भीरतापूर्वक मन्थन करेँ तो भ्रष्टाचार की जड़ को काटा जा सकता है। नयी पीढ़ी में नयी ललक हो, जिससे कि स्वस्थ और सर्वसुलभ शिक्षा उपलब्ध हो जाये। सरकारी शिक्षण-संस्थानो मे शिक्षा की गुणवत्ता, भवन आदिक का आकर्षण जनता तक पहुँचाना होगा।”
आयोजक भाषाविज्ञानी आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने कहा, ”शिक्षा व्यवसाय नहीँ, ज्ञान के लिए है। शिक्षा गुणवत्ता के साथ सबके लिए सुलभ हो, इसके लिए सबसे पहले कुकुरमुत्त्तोँ की तरह से धनउगाही के लिए उगाये जा रहे शिक्षण-संस्थानो को बन्द कराना होगा। शिक्षा के क्षेत्र मे सुयोग्य अध्यापकोँ की नियुक्ति के लिए आरक्षण को समाप्त कराना होगा। ‘सबको शिक्षा का अधिकार’ का व्यावहारिक रूप देना होगा।”
राँची से भारतीय जीवन बीमा निगम मे विकास-अधिकारी मनोज कुमार झा ने बताया, “सर्वप्रथम, सरकारी विद्यालयोँ की बुनियादी व्यवस्था मे गुणात्मक परिवर्तन लाने होँगे। एतदर्थ, शिक्षा-विभाग से भ्रष्टाचार का समूल नाश करना, साफ-सुथरे माहौल मे गुणी शिक्षकोँ को अध्यापन का अवसर देना, शिक्षेतर गतिविधियोँ से दूर रखना, उनकी उचित माँगोँ को स्वीकार करना, ग्रामीण-स्तर पर निर्धन छात्रोँ को आर्थिक एवं मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करना इत्यादिक शामिल हैँ। इसके अतिरिक्त, कम-से-कम प्राथमिक स्तर तक मातृभाषा मे शिक्षण को अनिवार्य किया जाना चाहिए।”
दिल्ली से साहित्यकार डॉ० जयशंकर सूर्यप्रताप शुक्ल ने बताया, “सबसे पहले तो यह महत्त्वपूर्ण है कि हम एक निरीक्षण-समिति बनायेँ, जो हर स्तर पर शिक्षा को उत्पाद बनने से रोकने मे क्षम हो। शिक्षा के क्षेत्र मे जुड़े हुए लोग को यहाँ कमाने का ज़रिया न समझ करके, लोग को हितार्थ माध्यम के रूप मे काम करने को प्रेरित किया जाये, जिसका कड़ाई से पालन किया हो।”
प्रयागराज से कवयित्री एवं पत्रकार उर्वशी उपाध्याय ने कहा, “शिक्षानीति ऐसी होनी चाहिए, जिससे कि शिक्षण-संस्थान एक समान शिक्षा-व्यवस्था को अपनाने पर बाध्य होँ। बुनियादी सुविधाओँ के साथ प्राथमिक और माध्यमिक स्तर तक की शिक्षा सरकारी और गैरसरकारी विद्यालयोँ मे एक-सी हो, पुस्तकेँ/पाठ्यक्रम समान होँ,शुल्क निर्धारित हो, अभिभावकोँ पर विद्यालय से ही खरीदारी करने की बाध्यता न हो।”
रायबरेली से साहित्यकार आरती जायसवाल ने कहा, ”देश के सरकारी शैक्षिक संस्थानो की गुणवत्ता-सुधारहेतु ठोस योजना बनायी जानी चाहिए, जिसका कठोरतापूर्वक पालन करवाया जाये। ‘उच्च-शिक्षा’ और ‘व्यावसायिक उच्च-शिक्षा’ को मात्र ‘निजी’ भरोसे पर न छोड़ा जाये, बल्कि सरकार-द्वारा भी ‘शैक्षिक संस्थानो’ की संख्या बढ़ाई जाये।”