राहुल सांकृत्यायन ने योँ ही नहीँ कहा था :– भागो नहीँ, दुनिया को बदलो

राहुल सांकृत्यायन के जन्म-दिनांक ९ अप्रैल पर विशेष प्रस्तुति
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विश्व के महानुभवी राहुल सांकृत्यायन के जन्मदिनांक ९ अप्रैल की पूर्व-संध्या मे ‘सर्जनपीठ’, प्रयागराज की ओर से एक राष्ट्रस्तरीय आन्तर्जालिक बौद्धिक परिसंवाद का आयोजन ‘सारस्वत सदन’, आलोपीबाग़, प्रयागराज से हुआ था, जिसमे देश के कई प्रतिष्ठित बुद्धिजीवियोँ की सहभागिता रही।

महामहोपाध्याय आचार्य डॉ० सुरेन्द्र कुमार पाण्डेय (पूर्व-आइ० ए० एस०, प्रयागराज) ने बताया, ”राहुल सांकृत्यायन का नाम हिन्दीसाहित्य-जगत् मे एक प्रगतिशील साहित्यकार और निष्पक्ष समालोचक के रूप मे अत्यन्त आदर के साथ लिया जाता है । वे जनवादी और सामाजिक सरोकारोँ के प्रति सजग और समर्पित थे । यायावर-प्रकृति के सांकृत्यायन के ऊपर बौद्ध-धर्म और दर्शन का प्रभाव परिलक्षित होता है । वे सनातन धर्म मे व्याप्त रूढ़ियोँ और अन्धविश्वासोँ पर अपनी रचनाओँ के माध्यम से प्रहार भी करते रहे।”

  डॉ० नीलम जैन (साहित्यकार एवं शिक्षाविद्, पुणे) ने कहा, "राहुल सांकृत्यायन का मानना था कि यात्रा व्यक्ति को सीमित सोच से बहिर्गत कर, व्यापक दृष्टिकोण देती है। उनके यात्रा-संस्मरण इसी अनुभव के सजीव दस्तावेज़ है। वे जीवन और समाज को तर्क अनुभव और वैज्ञानिकता के आधार पर देखने मे विश्वास रखते थे। उन्होँने सामाजिक विषमता, वर्ग-संघर्ष तथा शोषण के विरुद्ध आवाज़ उठायी थी। उनके चिन्तन मे करुणा और मोक्ष की बौद्ध-अवधारणा का गहरा प्रभाव रहा।''

आयोजक एवं भाषाविज्ञानी आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने बताया, "त्रिपिटिकाचार्य केदार पाण्डेय उर्फ़ रामउदार दास, राहुल सांकृत्यायन के चिन्तन-पक्ष मे इतने अन्तर्विरोध हैँ कि उसका विश्लेषण करनेवाला हतप्रभ रह जायेगा। वे कभी धर्म की आलोचनात्मक परख करते हैँ तो कभी सामाजिक न्याय के पक्षधर बन जाते हैँ। उनकी कभी किसी धर्म के प्रति आस्था थी ही नहीँ। यही कारण था कि उन्होँने बौद्धधर्म को धर्म न मानकर, सांस्कृतिक और बौद्धिक सम्पदा के रूप माना था। उन्होँने कहा था," हिन्दुस्तानियों की एकता मज़हबों के मेल पर नहीं, मज़हबों की चिता पर होगी।'' ईश्वर के अस्तित्व से इंकार करते हुए उन्होँने कहा था, "बुद्ध और ईश्वर साथ-साथ नहीँ रह सकते।''

 प्रो० शिवप्रसाद शुक्ल (हिन्दी एवं आधुनिक भारतीय भाषा-विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद) ने कहा, "राहुल जी का समग्र व्यक्तित्व प्रयोगशील रहा है। सामान्य सनातन परिवार मे, बचपन मे शादी, आर्यसमाज का बाल्यावस्था मे प्रभाव, ज्ञान एवं स्वाधीनता की ललक के कारण किसान-आन्दोलन के तहत जेल जाना, मार्क्स एवं बौद्ध विचारधारा से प्रभावित होकर विदेश की यात्राएँ करना उनके चिन्तनपक्ष का वैशिष्ट्य रहा है। उन्होँने बौद्ध-साहित्य को सहेजने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी।''

  विश्वदीपक उपाध्याय (प्राचार्य एवं सहायक प्राध्यापक– हिन्दी-विभाग, श्री ब्रजेन्द्र जनता महाविद्यालय, बिसावर, हाथरस) ने कहा, "आधुनिक विश्व मे, जहाँ तकनीकी प्रगति के साथ-साथ नैतिकता का संकट और सांस्कृतिक विस्थापन की चुनौतियाँ हैँ; वहीँ वर्तमान मे राहुल सांकृत्यायन के विचार हमे एक संतुलित समाज, वैज्ञानिक सोच तथा मानवीय मूल्योँ के पुनर्निर्माण की दिशा मे प्रेरित करते हैँ। वैश्विक माहौल मे, जहाँ आर्थिक असमानताएँ, पर्यावरणीय संकट तथा अंतर-सांस्कृतिक टकराव-जैसी समस्याएँ व्याप्त हैँ वहाँ उनकी ''वसुधैव कुटुम्बकम्'' से आत्मप्रेरित विचार अन्तरराष्ट्रीय सहयोग और संयुक्त दायित्व की आवश्यकता को स्पष्ट करते हैँ।''

आशा राठौर (सहायक प्राध्यापक– हिन्दीविभाग, श्री राघवेन्द्र सिँह हजारी शासकीय महाविद्यालय, हटा, दमोह (मध्यप्रदेश) ने कहा, “असाधारण प्रतिभा के धनी राहुल सांकृत्यायन के ज्ञान का अधिकांश आधार स्वाध्याय एवं स्वानुभव था। आर्यसमाज, बौद्ध-धर्म, मार्क्सवाद, वामपन्थ से होते हुए वे मानवधर्म तक पहुँचनेवाले , अपने ज्ञान के आभामण्डल से सभी को आकर्षित करनेवाले महापण्डित थे।’

डॉ० धारवेन्द्रप्रताप त्रिपाठी (प्रवक्ता– हिन्दी-विभाग, बाल भारती स्कूल, प्रयागराज) का मानना है, “राहुल सांकृत्यायन का चिन्तन-पक्ष प्राचीन के प्रति आस्थावान, इतिहास के प्रति गौरवपूर्ण एवं वर्तमान के प्रति सजग दृष्टिकोण के समन्वय पर आधारित है। उन्होँने अपनी घुमक्कड़ और ज्ञान की खोज की भावना से भारतीय समाज मे व्याप्त वर्ग-संघर्ष और आर्थिक असमानता के मुद्दोँ को व्यापकता के साथ समझने- सुलझाने की कोशिश की है।”