कैसे बचेँ महिलाएँ, अपराधियोँ की क्रूर दृष्टि से?

भारतीय बुद्धिजीवी मुक्त कण्ठ से शब्द-क्रान्ति करने से डर क्योँ रहे हैँ? आज गुण्डोँ-लम्पट-मवालियोँ की एकपक्षीय राजनीति से भारतीय समाज ‘धधक’ रहा है; विस्फोट की स्थिति उत्पन्न हो चुकी है। ‘मेरा राज्य तेरे राज्य से अच्छा है’। उन धृतराष्ट्र और गान्धारी से पूछो– आज भारत मे प्रतिदिन नब्वे (९०) महिलाओँ के शरीर के साथ मनचाहा खेल खेला जा रहा है; उन्हेँ तिल-तिलकर मारा जा रहा है और ‘मेरा राज्य-तेरा राज्य’ करनेवाले हिजड़े केवल आरोप-प्रत्यारोप करते आ रहे हैँ।

हमने इसी विषय पर मुक्ति-उपाय तलाशने के उद्देश्य से देश के उन बुद्धिजीवियोँ से विचार प्राप्त किये हैँ, जो अपने-अपने स्तर से मुखर रहे हैँ।

आइए! आप भी उनके शब्दोँ के साक्षी बनेँ।

सर्जनपीठ, प्रयागराज के तत्त्वावधान मे २२ अगस्त को सारस्वत सदन, आलोपीबाग, प्रयागराज की ओर से ‘कैसे बचेँ महिलाएँ, अपराधियोँ की क्रूर दृष्टि से’ नामक ज्वलन्त विषय पर एक राष्ट्रीय आन्तर्जालिक बौद्धिक परिसंवाद का आयोजन प्रसिद्ध समाजसेविका डॉ० संतोष गोइन्दी की अध्यक्षता मे की गयी, जिसमे देश के अनेक महिला-पुरुष बुद्धिजीवियोँ की सहभागिता रही।

डॉ० संतोष गोइन्दी ने बताया, ”प्रत्येक नारी की रक्षा का दायित्व सरकार पर है। समाज मे एक ऐसा सुदृढ़ संघटन होना चाहिए, जो किसी अवस्था-वर्ग की महिला के साथ किये जा रहे जघन्य कृत्य को करने से रोके। ऐसे प्रकरण मे किसी भी तरह की राजनीति न की जाये। कामकाज़ी महिलाओँ की सुरक्षा का दायित्व सम्बद्ध कार्यालय, कम्पनी, चिकित्सालय आदि को लेना होगा।”

वैल्हम गर्ल्स स्कूल, देहरादून मे हिन्दी की प्रवक्ता डॉ० नालन्दा पाण्डेय ने कहा, ''महिलाओँ की सुरक्षा-हेतु वर्ष २०२४ में पॉफ्सो अधिनियम (प्रोटेक्शन ऑफ़ फ़ीमेल्स फ़्रॉम सेक्सुअल ऑफ़ेंसेज़) बनाना अनिवार्य है। महिलाओँ की सुरक्षा के लिए आत्मरक्षा प्रशिक्षण शिक्षा का अनिवार्य अंग बनाना होगा और नागरिकों के चारित्रिक शक्तीकरण को शिक्षा-नीति का प्रमुख लक्ष्य बनाना होगा। कामकाजी महिलाओँ के कार्यस्थलोँ पर सुरक्षा सुनिश्चित करने-हेतु सतर्कता-विभाग और सुरक्षित विश्राम कक्षोँ की व्यवस्था के लिए नियोक्ता को क़ानूनी स्तर पर बाध्य करना होगा।''

देवरिया से अध्यापिका एवं कवयित्री प्रियंवदा पाण्डेय का मानना है, ''सरकार को ऐसे कुकृत्य रोकने-हेतु अपराधियोँ पर नकेल कसते हुए, सजा की प्रकृति मे आमूलचूल बदलाव कर, अरब देशोँ में दी जानेवाली सज़ा लागू की जानी चाहिए। बच्चोँ के पाठ्यक्रम से ग़ायब होती नैतिक शिक्षा को पुनः लागू करने और पढ़ाये जाने की भी आवश्यकता है।''    

आयोजक एवं भाषाविज्ञानी आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने बताया, ”हर माता-पिता वा अभिभावक को अपनी बेटी-बहू तथा परिवार की अन्य महिलाओँ के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध रखना चाहिए और उनके साथ खुलकर संवाद करना चाहिए, जिससे कि वे बिना किसी झिझक के अपने साथ भीतर-बाहर होनेवाली हर अच्छी-बुरी बात को बता सकेँ। देश मे किसी प्रकार के आरोप के विषय मे तत्काल एफ० आइ० आर० लिखने का क़ानून बनाया जाना चाहिए। यदि पुलिस वैसा नहीँ करती है तो सम्बन्धित थानाध्यक्ष को तत्काल प्रभाव से निलम्बित किया जाये। किसी स्तर की सेवा मे महिलाओँ को अधिकतम आठ घण्टे की सेवा निर्धारित करनी होगी। महिलाओँ के साथ नृशंस घटना होने पर एक माह के भीतर सुनवाई पूरी कर, अपराधी को मृत्युदण्ड की सज़ा सुनायी जानी चाहिए। ऐसे प्रकरण मे किसी प्रकार का राजनीतिक हस्ताक्षेप नहीँ होना चाहिए।”

राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, जयपुर मे हिन्दी-व्याख्याता दिनेश वर्मा ने कहा, ”विद्यालय स्तर से ही प्रत्येक बालिका को आत्मसुरक्षा से सम्बन्धित प्रशिक्षण अनिवार्य रूप से देना होगा, ताकि आवश्यकता पड़ने पर वह आत्मरक्षा कर सके, साथ ही सरकार को ऐसा उपकरण मुहैया कराना होगा, जिससे बच्ची, किशोरी, युवती, प्रौढ़ा तथा वृद्धा के साथ होनेवाली अनहोनी की सूचना तुरन्त नज़्दीकी सुरक्षाकर्मी अथवा पास के लोग को दी जा सके और फ़ौरन उनकी सुरक्षा हो सके। दुष्कर्मी के लिए कठोरतम क़ानून बनाने की आवश्यकता है, जिससे दोषी बच न पाये।”