इस बार
बारिश की पहली बूँदों से
खुद टूटकर
टूटे-बिखरे पत्ते ने
अपनी शाख से
नयी कोपल को संभालने की
अरदास की।
अलग होने लगी बिखरी पत्तियाँ
धरती का स्पर्श कर
कह रही हर ऊँचाई के बाद
इसी धरती की मिट्टी मे
स्थान रह जायेगा।
इस बार की बारिश
भिगो रही उसी शाख को
जहाँ नयी कोंपले बदल रही पत्तों मे।
–आकांक्षा मिश्रा