आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय की पाठशाला

शब्द– एहसास-एहसान, दम्पती, नवरात्र, ब्रह्मा तथा मनोरंजन।

★ एहसास– प्राय: जनसामान्य इस शब्द को ‘अहसास’ बोलता-लिखता आ रहा है, जो कि पूरी तरह से ग़लत है। कुछ लोग तो एहसास का हिन्दीकरण ‘अहसास’ समझते और व्यवहार करते हैं, जो कि ग़लत सोच है। अरबी-भाषा के शब्द ‘एहसास’ की हिन्दी पहले से ही है, जिसे हम ‘अनुभव’ कहते हैं। उदाहरण के लिए– तुमने उसका अपमान किया है, उसे इसका ‘एहसास’ है। इतना ही नहीं, कुछ लोग एहसास का बहुवचन ‘एहसासों’/’अहसासों’ के रूप में भी करते हैं, जो कि सही नहीं है। एहसास का बहुवचन ‘एहसासात’ होता है। इसी तरह से अरबी-भाषा का ही एक अन्य शुद्ध शब्द ‘एहसान’ है, जिसे लोग भ्रमवश हिन्दी बनाकर ‘अहसान’ के रूप में अशुद्ध प्रयोग करते हैं, इसकी हिन्दी है, ‘उपकार’, ‘कृतज्ञ’ तथा ‘आभारी’। उदाहरण के लिए– मुझे किसी के ‘एहसान’ की ज़रूरत नहीं, मैं समर्थ हूँ। इसी शब्द से ‘एहसान फ़रोश (जो उपकार करके सबसे कहता फिरे।), ‘एहसान फ़रामोश’ (जो किसी का उपकार भूल जाये; कृतघ्न।), ‘एहसानमन्द’ (उपकार को माननेवाला; कृतज्ञ, आभारी) बने हैं।

★ नवरात्र– इन दिनों अधिकतर लोग ‘नवरात्र’ शब्द के स्थान पर ‘नवरात्रि’ का प्रयोग कर रहे हैं, जो कि अशुद्ध और अनुपयुक्त है। नौ दिनों के समय; नौ दिनों में समाप्त होनेवाला एक प्रकार का धार्मिक अनुष्ठान ‘नवरात्र’ है; चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक तथा आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक के नौ दिन ‘नवरात्र’ कहलाते हैं। जब कोई ‘नवरात्रि’ का प्रयोग करता है तब उसका अर्थ ‘नयी रात्रि’ हो जाता है। ऐसे में, ‘नवरात्र’ के अर्थ और भाव से उसका कोई प्रयोजन नहीं रहता। उदाहरण के लिए– श्रद्धापूर्वक नवरात्र का अनुष्ठान सम्पन्न करो।

★ दम्पती– इस शब्द का भी ‘दम्पत्ति’ के रूप में अशुद्ध प्रयोग होता आ रहा है। शुद्ध शब्द ‘दम्पती’ है। पति-पत्नी के जोड़े को ‘दम्पती’ कहा गया है। उदाहरण के लिए– उस दम्पती को देखो, कितना सुखी है। इसी शब्द से ‘दाम्पत्य’ शब्द की रचना की गयी है, जिसका अर्थ ‘दम्पती से सम्बन्धित’ है; जैसे– दाम्पत्य जीवन।

★ ब्रह्मा– यह शब्द ऐसा है, जिसे अधिकतर लोग ग़लत लिखते हैं तो उसे सही पढ़ते हैं; सही लिखते हैं तो ग़लत पढ़ते हैं तथा ग़लत लिखते और पढ़ते भी हैं। ऐसा इसलिए कि प्राय: लोग ‘ब्रम्हा’ लिखते-बोलते हैं, जबकि इस शब्द-रचना में सबसे पहले ‘ब’ है और ब में ‘र’ की मात्रा (ब्र) है; उसके बाद ‘ह’ (ब्रह) आता है, फिर इसी ‘ह’ के भीतर ‘म’ अक्षर को प्रवेश कराया जाता है, इस प्रकार से :– (ह्म) और अन्त में ‘ह्म’ में ‘अ’ की मात्रा (ह्मा) लगायी जाती है। अब आपका शुद्ध ‘ब्रह्मा’ शब्द बन गया। यहाँ पहले ‘ह’ है, बाद में ‘म’, इसलिए उच्चारण करते समय पहले ‘ह’ की ध्वनि निकलेगी, फिर ‘म’ की; परन्तु यह ध्वनि ‘संयुक्त’ रहेगी :– ब्रह्मा। उदाहरण के लिए– त्रिदेव में से प्रथम देव ‘ब्रह्मा’ हैं।

★ मनोरंजन– प्राय: लोग मनोरंजन के स्थान पर ‘मनरंजन’ का प्रयोग करते हैं, जो कि अशुद्ध और अनुपयुक्त है। ऐसा इसलिए कि मनोरंजन शब्द में ‘मनस्’ और ‘रंजन’ का योग ‘षष्ठी तत्पुरुष’ समास के रूप में है, जिससे शुद्ध और उपयुक्त शब्द ‘मनोरंजन’ की रचना होती है। उदाहरण के लिए– स्वस्थ मनोरंजन का साधन विकसित करो।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १३ जून, २०२२ ईसवी।)