अपने ध्येय से पथभ्रष्ट उत्तर प्रदेश का शासन तन्त्र

 जगन्नाथ शुक्ल(प्रतियोगी छात्र इलाहाबाद) 


आदरणीय जनता के स्वघोषित सेवकों!
०  प्राथमिक की संविदा तो खत्म कर दी या करने की चाहत है ,वहाँ पर अयोग्य थे सब । जहाँ (माध्यमिक विद्यालय) में संविदा नहीं थी या फिर नगण्य थी वहाँ आपने संविदा शिक्षक की भर्ती क्यों शुरू कर दी ?
० ५० साल में जबरन सेवानिवृत्ति का शिगूफा लेकर आए आप , फिर ६२ से ७० के आयुवर्ग वालों को नियुक्त करने की वेश्यावृत्ति का चलन क्यों?
० जिस माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड को माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षक नियुक्त करने का प्राधिकार था , उसे पहले आपने पंगु किया ततपश्चात् उच्च शिक्षा आयोग एवं माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड  को संयुक्त उपक्रम बनाने का व्यभिचार क्यों ?
० अब प्राथमिक की भर्ती करने का अधिकार चयन बोर्ड को , जिससे की यह भर्ती भी इंतज़ार की बाट जोहती रह जाय। आखिर जिस बोर्ड को आपने माध्यमिक के पूर्व के दो-२ सरकारों द्वारा विज्ञापित पदों की भर्ती करने में अक्षम बना दिया वह प्राथमिक की भर्ती करने में रातों रात सक्षम कैसे हो गया?
इन ज्वलंत प्रश्नों के उत्तर की शिक्षित बेरोजगार युवावर्ग आप से अपेक्षा करता है, महोदय जी आपको युवाओं की उपेक्षा बहुत भारी पड़ेगी। संकल्प का कोई विकल्प नहीं होता है, अनुशीलन करिए और अपनी नीतियों की निष्पक्ष होकर समीक्षा करिए अन्यथा आपकी २०१९ की परीक्षा का परिणाम क्या होगा ?
आप राजनीतिक दल हो , आपको प्रत्येक ५वर्ष में जनता के समक्ष प्रस्तुत होना है आप क्या बताओगे कि मैंने उस ६५ वर्षीय युवा को भविष्य निर्माण का कार्य दे दिया है जो शायद इस योग्य होता तो सेवानिवृत्त न होता? इस स्थिति में न तो देश बन पाएगा और न ही देशिक वातावरण। अगर राजनीतिक दृष्टि से भी देखें तो आपको मत न तो यह ७० वर्षीय वृद्ध देगा और न ही भूख से बिलबिलाता युवा।
महोदय जी यह सिद्ध करता है कि आपको न देश/प्रदेश के भविष्य की चिन्ता है और न ही देश/प्रदेश के जनमानस की,यह राजपाट स्थायी नहीं है,सिंहासन को परिवर्तन ही पसन्द है।
“मुद्दतों बाद भी मेरे वतन की तस्वीर न बदली।
न ही यह उन्मुक्त परिंदों की तकदीर ही बदली।।
अगड़ी और पिछड़ी के बीच ही विष वृक्ष का,
अभी भी भारत की  सारी सरकारें पगली।।”