आकांक्षा मिश्रा, उत्तर प्रदेश
अनन्त प्रतीक्षा बाद
तुम्हें मैंने पाया
एक बार न कोई सवाल
न कोई जानने की जिज्ञासा
मेरे हृदय में कुछ पीड़ा
उमड़ रही थी
तुमसे शिकायत करके
जी हल्का करना चाह रही थी
ऐसा न हुआ
मन की चिंताओं से
आते और एक आस बढ़ा
जाते
कुछ फूलों के गुच्छों को देखकर
तुम खुश होने का प्रयत्न करते
एक मधुर मुस्कान लिए
भौरों के आने के पहले ।