पानी मीठा चाहिए, जीव-जगत सब कोय ।
अति आनन्द प्रीति तिया, काया जबहिं भिगोय ।।
पानी पी-पी जग जिये, जुग-जुग अकट प्रमान ।
पानी मत बिथराइयो, रखियो याको मान ।।
पानी बहता निर्झरा, ऋतम्भरा हरसाय ।
सीतल पानी पान को, कौन नहीं ललचाय ।।
पानी बादल लाइयो, खार समुद्र सुखाय ।
अमृत सम बरसाइयो, सब धरती हरियाय ।।
पानी नदिया लै चली, प्रियतम सागर छोर ।
गुण अवगुण सब साथ में, रखी न कोई कोर।।
पानी निर्मल सब चहैं, हिय निर्मलता कौन ।
कल-कल, कुल-कुल स्वर लहर, अंतरध्वनि हुइ मौन ।।
पानी जिस बर्तन भरा, धारयो वइसन रूप ।
पानी रंग बरुथिया, सहजै भयो अनूप ।।
पानी जिमि रौ बहिचलै, दिखै न कोई वेश ।
आतम देही त्यागि तिमि, चलै पिया के देश ।।
विदु-जन सुरति बिसारिया, भागैं दुनिया साथ ।
मूरख तुम ना भागियो, बरतन साधे हाथ ।।
अवधेश कुमार शुक्ला
मूरख हिरदै, मूर्खों की दुनिया
विश्व जल दिवस
चैत्र प्रथमा, संवत २०८० - चंद्र
22 मार्च 2023