जनता हालत यों दिखे, रहा गिद्ध ज्यों नोच

——–० यथार्थ-दर्शन ०——-

एक–
महँगाई है मारती, भूख करोड़ों लोग।
कुछ मरते हैं भोग से, कुछ मरते हैं रोग।
दो–
सिर पर छत दिखती नहीं, आस एक विश्वास।
अपने मन के सब यहाँ, नहीं दिखे हैं ख़ास।।
तीन–
पुण्यबुद्धि भी हैं यहाँ, पापबुद्धि हर ओर।
विषय बदलते ही यहाँ, मन हो जाता थोर।।
चार–
योगी भोगी हो रहे, लिये सनातन चाह।
जो इनके चंगुल रहा, रहा भटकता राह।।
पाँच–
हम ही हम दिखते रहें, यही एक है सोच।
जनता हालत यों दिखे, गिद्ध रहा ज्यों नोच।।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २९ जनवरी, २०२४ ईसवी।)