मानवता सिसकी भरे, दुर्जन चुप्पी ओढ़

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

एक―
दर्द दवा से दाबकर, कब तक लोगे काम।
जीवन जंगल बन गया, दिखते नमकहराम।।
दो―
टन्-टन् टोना-टोटका, टप्-टप् टपके झूठ।
सोचो! सच सोता नहीं, सोच-सोचकर रूठ।।
तीन―
माया-मोह विमुक्त हो, छल-छर१ से हो दूर।
सत्य सदा संशयरहित, कलुषित-कुत्सित सूर।।
चार―
नंग-रूप नंगाचरित, विषमय की पहचान।
विश्वम्भर२ विस्मित दिखे, अतिशय३ पाप महान्
पाँच―
मानवता सिसकी भरे, दुर्जन चुप्पी ओढ़।
व्याध४ कस रहा जाल है, तनभर होगा कोढ़।।
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शब्दार्थ :― १छल-छद्म २विश्व का पालनकर्त्ता ३बहुत ४शिकारी।

(सर्वाधिकार सुरक्षित― आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २१ जनवरी, २०२३ ईसवी।)