हिन्दी दिवस: भाषारण्य में जब तक हिंदी रहेगी, धरा पर अभिव्यक्ति इसकी सर्वोत्तम रहेगी

ठिठुरती है ग्रीष्म में अब हिंदी वाणी
वर्णमाला की नौका में आया है पानी।

हिंदी के प्रियतम खिवैया बनकर इसमे बैठिये
विपरीत धारा से ये आजन्म यात्रा कीजिए।

हरिचरित के स्वरूप का यह बखान करती
देश की संस्कृति का यह उन्नयन करती।

पालती है यह संस्कारों के नव विटप को
करती है यह पुष्ट सर्वत्र राष्ट्रगौरव को।

कवियों ने है इसे अपना सुमेरु माना
तुलसी और सूर को है जगत ने जाना।

भाषारण्य में जब तक हिंदी रहेगी!                               
धरा पर अभिव्यक्ति इसकी सर्वोत्तम रहेगी।    
                    अभिजीत मिश्र 
ग्राम व पोस्ट बालामऊ, 
जनपद हरदोई