‘बाग़ी बलिया’ से प्रक्षेपित शब्दतीर : सियासत नंगी-जाहिल ज़ाहिर हो चुकी

★ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

रिश्तों की अहम्मीयत अब जान जाइए,
बुराई में अच्छाई अब पहचान जाइए।
निगाहें ग़र तलाशी लेने पे उतर आयें,
ज़बाँ को तसल्ली दे मुसकान लाइए।
नज़रें इनायत हों तो एक बात मैं कहूँ,
अपनी कथनी-करनी में ईमान लाइए।
सियासत नंगी-जाहिल ज़ाहिर हो चुकी,
हर सम्त है अँधेरा, नया विहान लाइए।
निगाहें अपनी हर सू हर शै ढूँढ़ लाती हैं,
कुछ बचा हो कहीं से तो निशान लाइए।
अश्आर को ग़ज़ल ख़ारिज़ करती यहाँ,
अब आप कोई मुकम्मल दीवान लाइए।
(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १६ फरवरी, २०२१ ईसवी।)