एक अभिव्यक्ति : पराजित देह की ‘अनश्वर’ पटकथा

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
(प्रख्यात भाषाविद्-समीक्षक)

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय


 

 

(सर्वाधिकार सुरक्षित : डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय; २८ जनवरी, २०१८ ईसवी)
यायावर भाषक-संख्या : ९९१९०२३८७०
ई०मेल : prithwinathpandey@gmail.com


बिखरे पंख, टूटे पाँव
कटे हाथों से
दर्द की दवा माँग रहे हैं।
याचित-अयाचित भीड़ की नुमाइश में
अकेला रह गया इंसान
हाथों की लकीरों में
तदबीर की चिट्ठी बाँच रहा है।
नीलाम होता ईमान
नीयत और विडम्बना के भरोसे
चीर-हरण कराने की स्वीकृति
कपोलों तक रिसती संवेदना से संवाद कर
चाहे-अनचाहे ग्रहण कर लेता है।
एक सिमटा-सा बाज़ार
देखते-ही-देखते
एक बृहद् आकार लेने लगता है।
एक सहृदय शरीरधारी
उधर से गुज़रता है
विस्फारित नेत्रों से माहौल को रगड़ता है
उसके ओष्ठ स्पन्दित हो उठते हैं
शब्द आहिस्ते-आहिस्ते झरने लगते हैं।
निस्तेज काया की एक परिचित-मादक सुगन्धि
वातावरण को अपने आगोश में भर लेती है।
चिर-यौवना अभिसारिका अनावृत्त हो;
निशि-दिवा-सी जीवन-व्यापार से सम्पृक्त हो;
अशेष को ‘शेष’ की ओर गतिमान् करते हुए,
काया-कुण्ड में निमग्न हो जाने के लिए
सम्मोहक निमन्त्रण दे रही है;
और मैं, अशरीर होते
अपनी पराजित देह की,
अनश्वर पटकथा लिख रहा हूँ।