तलाश : एक नयी धरती की

★ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

मेरे मन के पाँव
विश्वास की धरती का
एक टुकड़ा खोजने के लिए निकल पड़े :–
रिश्तों का; धर्म का
अहम् का; त्वम् का
अपने का; पराये का;
किन्तु हर बार :–
एक ऐसा भूचाल आया;
धरती का कोई टुकड़ा
ठहर न पाया
और
विखण्डित टुकड़ों की खाई में
विश्वास के पाँव धँसने लगे;
मगर धँसते हुए उन पाँवों ने भी
विश्वास के साथ यही निश्चय किया–
इन पाँवों के नीचे से
एक नयी धरती निकालेंगे।
(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २५ नवम्बर, २०२० ईसवी)