प्रसाद गरम-ताज़ा-स्वादिष्ट रहा तथा प्रदर्शनी अत्युपयोगी रही

१५ जनवरी का प्रयागराजतीर्थ-दर्शन और महाकुम्भ मनोरम रहा। उत्तरप्रदेश-पर्यटन-विभाग एवं उत्तरप्रदेश संग्रहालय निदेशालय की ओर से आयोजित कला, संस्कृति-इतिहास-पुरातत्त्व एवं पाण्डुलिपि-विषयक प्रदर्शनी अत्युपयोगी रही है; दुर्लभ एवं प्रामाणिक सामग्री सुव्यवस्थित ढंग से रखी गयी थीँ।

मेरे पास समय रहता तो वहीँ बैठकर दो माह के भीतर एक अन्वेषणात्मक, गवेषणात्मक एवं शोधात्मक ग्रन्थ का प्रणयन कर लेता, जो निश्चित रूप से ‘अभूतपूर्व एवं ‘ऐतिहासिक’ कृति के रूप मे सिद्ध होता।

सर्वप्रथम गंगाजलधारा मे ‘आत्मदर्शन’ की प्रतिष्ठा की थी, तदनन्तर शिक्षोपयोगी तीन भिन्न-भिन्न प्रदर्शनी (‘प्रदर्शनियोँ ‘ अशुद्ध है।) के अध्ययन किये थे।

प्रदर्शनी-अवलोकन से पूर्व हम इस सत्संग-पाण्डाल से उस सत्संग-पाण्डाल (‘पण्डाल’ अशुद्ध है।’) तक का भ्रमण करते रहे, तभी मथुरा (उत्तरप्रदेश) के अज्ञात धर्म-संस्था की ओर से किसी से उसकी धर्म-जाति पूछे बिना ‘प्रसाद’ के रूप मे गरम चावल-दाल का मुक्त हस्त से वितरण किया जा रहा था। हमने भी प्रसन्नतापूर्वक प्रसाद ग्रहण किये थे। जब हमे घर-जैसी थाली थमायी गयी थी तब हमने अपना आर्थिक सहयोग करना चाहा था; परन्तु उधर से ‘वर्जित’ किया गया।

◆ छायाकार :– कंजिका (ज्येष्ठ पुत्री)