महादेवी वर्मा की आचरण की सभ्यता उच्च कोटि की थी– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

‘साहित्यकार-संंसद्’, रसूलाबाद, प्रयागराज के तत्त्वावधान मे २६ मार्च को महीयसी महादेवी वर्मा की ११५वीं जन्मतिथि का आयोजन किया गया। दो सत्रों मे आयोजित सारस्वत समारोह का प्रथम सत्र वैचारिक और बौद्धिक था, जो महादेवी वर्मा के सामाजिक अवदान पर आधारित था। समारोह के द्वितीय सत्र मे काव्यपाठ का आयोजन किया गया था।

समारोह मे मुख्य अतिथि सन्त स्वामी कृष्ण गोपाल थे। भाषाविज्ञानी और समीक्षक आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय विशिष्ट अतिथि थे। संस्था के अध्यक्ष डॉ० रामकिशोर शर्मा ने अध्यक्षता की थी।

विचारगोष्ठी के अन्तर्गत सर्वप्रथम आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय को आमन्त्रित किया गया; उन्होंने बताया, “महीयसी महादेवी वर्मा को सामाजिक जीवन मे निभाये अपने दायित्वों का सम्यक् बोध था। भारत की सांस्कृतिक पराधीनता उनके लिए एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न था। स्त्रियों की शिक्षा और उनका मुक्त विकास उनके लिए निजी प्रश्न की तरह थे। आज भी स्त्रीमुक्ति के सम्बन्ध मे उनके विचार एक प्रेरक स्तम्भ हैं। उन्होंने उस मुक्ति को जिया था और उसको एक सार्थक और रचनात्मक दिशा दी थी।”

मुख्य अतिथि सन्त स्वामी कृष्ण गोपाल ने केवल तीन वाक्यों मे अपना उद्बोधन समाप्त किया था, जिसका सार था– महादेवी जी ने युवाओं को जोड़ने और उनमे जागृति पैदा करने की आवश्यकता पर बल दिया था।

संस्था के अध्यक्ष डॉ० रामकिशोर शर्मा ने कहा, “महादेवी जी की संघर्ष-चेतना देखते ही बनती थी। उनकी कथनी-करनी मे अद्भुत सामंजस्य की भावना थी। उन्होंने स्त्रियों मे आत्मनिर्भरता की भावना जाग्रत् की थी।”

दूसरे सत्र मे कविसम्मेलन हुआ। कवयित्री गीता सिंह ने ‘बेहया फूल’ को प्रतीक बनाकर एक प्रभावकारी कविता सुनायी, जो बेसद पसन्द की गयी। संचालक और संयोजक प्रद्युम्ननाथ तिवारी ‘करुणेश’ ने सुमधुर कण्ठ का परिचय देते हुए मनोरम गीत प्रस्तुत किया था। पीयूष मिश्र ने नयी कविता सुनायी। आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने सुनायी, “इंसानियत को खा गयी है, भूख आपकी, ख़ैरियत इसी मे आपकी, चले जाइए हुजूर।”