प्रयागराज से शीघ्र एक ‘गवेषणात्मक’ पत्रिका का प्रकाशन

सम्मानित प्रबुद्धजन और विद्यार्थिवृन्द!

हम प्रयागराज से निकट भविष्य में एक चिन्तन और गवेषणा-प्रधान हिन्दी-त्रयमासिकी का प्रकाशन करेंगे, जिसे हम अपने सुविधानुसार ‘मासिकी’ का भी रूप देंगे। हमारा प्रयास रहेगा कि उस पत्रिका-विशेष में मुद्रित की जानेवाली प्रत्येक सामग्री और उसकी प्रस्तुति-शैली अनन्य रहे। ऐसा इसलिए कि ‘शोधपत्रिका’ के नाम पर जितनी भी पत्रिकाएँ दिख रही हैं, उनमें से अधिकतर स्तरहीन हैं, कारण कि उन्हें इतना व्यावसायिक बना दिया गया है और कुपात्रों के हाथों में सम्पादन करने के लिए थमा दिया गया है; अकुशल लोग सुविधा-साधन के बल पर सम्पादक बन गये हैं कि वे ज्ञान के धरातल पर ‘बौनी’ लक्षित हो रही हैं; यथा– शीर्षक कुछ-सामग्री कुछ; भाषास्तर पर क्षरण-ही क्षरण; प्रकाशित सामग्री को किस आधार पर ‘लेख’ कहा जाये और किस आधार पर ‘निबन्ध’; चार पृष्ठों के लेख में पच्चीस पुस्तकों के सन्दर्भ, फिर लेखक का मौलिक शोध-चिन्तन कहाँ? इतना ही नहीं, सम्पादनकला के नाम पर ‘बीभत्स कला’ का प्रदर्शन किया जाता है। इसके लिए भाषादक्षता और शब्दसामर्थ्य की अभियोग्यता ‘नहीं’ के समान है। हम कदापि उस पंक्ति में अपनी पत्रिका की परछाईं तक नहीं पड़ने देंगे; क्योंकि हम ‘संकल्प-विकल्प’ के संवाहक रहे हैं।

हम अपनी पत्रिका में मूल्यविहीनता का साया दूर-दूर तक नहीं पड़ने देंगे और न ही अयोग्यतामूलक किसी भी परिचित, सन्निकटवर्ती, स्वजन-परिजन आदिक के हस्तक्षेप, अनुरोध को अपने सम्पादन-अनुशासन के मार्ग में ‘व्यवधान’ उपस्थित करने की अनुमति देंगे।

हमारी पत्रिका की भाषा-शैली पृथक् रहेगी। हम ‘केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय’ के गर्हित मानकीकरण की मान्यता से इतर स्वयं की विशुद्ध शास्त्रीय और व्याकरणीय स्थापना करते हुए, पत्रिका के प्रत्येक पृष्ठ पर मुखर रहेंगे। हमारा लेखक और पाठकवर्ग स्खलित भाषा-विचार और आत्ममुग्धता से परे रहकर स्वतन्त्र, स्वच्छन्द मौलिक चिन्तन के सारस्वत धरातल का सर्जन करता परिलक्षित-संलक्षित होगा।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; ५ जून, २०२१ ईसवी।)